________________
Svayambhūstotra
व अपना घात स्वयं करते हैं। ऐसे ही अज्ञानी लोगों ने तत्त्व की सर्वथा अवक्तव्यता का आश्रय लिया है।
Those who are unable to rid their viewpoints of faults, like selfcontradiction, and hold malice towards your doctrine, are destroyers of the self. Such ignorant people then take refuge in the viewpoint that reality is altogether indescribable.
सदेकनित्यवक्तव्यास्तद्विपक्षाश्च ये नयाः । सर्वथेति प्रदुष्यन्ति पुष्यन्ति स्यादितीह ते ॥
(18-16-101)
सामान्यार्थ - सत्, एक, नित्य, वक्तव्य और इनसे विपरीत - असत्, अनेक, अनित्य और अवक्तव्य – ये जो नय हैं वे इस जगत् में सर्वथा रूप से वस्तु-तत्त्व को प्रदूषित (विकृत) करते हैं और कथंचित् रूप से वस्तु-तत्त्व को पुष्ट करते हैं।
The viewpoints of absolute existence, oneness, permanence, and describability, and their opposites – absolute non-existence, manyness, non-permanence, and indescribability - corrupt the nature of reality while the use of the word 'syāt' (conditional, from a particular standpoint) to qualify the viewpoints makes these logically sustainable.
126