________________
Lord śāntinātha हुए, पश्चात् साधुपद में आत्मध्यान-रूपी चक्र से अत्यन्त दुर्जय ऐसे मोहनीय कर्म के समूह को जीत कर महान् उदय को प्राप्त हुए थे।
Lord Sāntinātha became the king of kings (cakravartī) by subjugating the entire community of kings through his cakraratna* - Sudarśana cakra, a source of terror for the enemies - and later on, through the cakraratna of pure concentration, he tamed the invincible army of the deluding karmas.
*the divine, disk-like spinning weapon with serrated edges
राजश्रिया राजसु राजसिंहो रराज यो राजसुभोगतन्त्रः । आर्हन्त्यलक्ष्म्या पुनरात्मतन्त्रो देवासुरोदारसभे रराज ॥
(16-3-78)
सामान्यार्थ - जो परम प्रतापशाली राजाओं के महा-मनोहर भोगों के भोगने में स्वाधीन होते हुए राजाओं के मध्य में चक्रवर्ती पद की राज्यलक्ष्मी से सुशोभित हुए थे, फिर मोह का नाश करके केवलज्ञान प्राप्त कर आत्माधीन होकर सुर-असुरों की विशाल समवसरण सभा में आर्हन्त्य लक्ष्मी से सुशोभित हुए थे।
Lord śāntinātha was the mightiest of emperors; domineering over all imperial enjoyments, he shone with unrivalled magnificence among the kings. Subsequently, absorbed in his
105