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Lord Kunthunatha
सामान्यार्थ – हे यतिश्रेष्ठ ! क्योंकि ब्रह्मा आदि लौकिक देवता आपकी केवलज्ञान विभूति के अंशमात्र को भी प्राप्त नहीं करते हैं इसलिए उत्कृष्ट बुद्धि के धारक तथा आत्महित साधना में निमग्न गणधरादि आर्य पुरुष जन्म-मरण से रहित, अनन्त केवलज्ञानादि विभूतियों के धारक और स्तुति के योग्य आपकी ही स्तुति करते हैं।
O Supreme Sage! Since the worldly gods are not able to get to even an iota of your knowledge and splendour, the intelligent and learned ascetics, striving after the well-being of their souls, worship only you who is free from rebirth, possessor of the infinitudes and adorable.
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