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Svayambhūstotra
अन्तकः क्रन्दको नृणां जन्मज्वरसखः सदा । त्वामन्तकान्तकं प्राप्य व्यावृत्तः कामकारतः ॥
(18-8-93) सामान्यार्थ - हे भगवन् ! पुनर्जन्म तथा ज्वर आदि रोगों का मित्र मरण-रूपी यमराज प्राणियों को सदा ही रुलाने वाला है। वह आपको प्राप्त कर अर्थात् आपके पास आकर अपनी स्वछन्द क्रिया करने से उपरत हो गया था।
O Lord! After you had subjugated Yama (the god of death), friends with rebirth and illness, and the cause of grief to the human beings, he ceased to act as per his unbridled instincts.
भूषावेषायुधत्यागि विद्यादमदयापरम् । रूपमेव तवाचष्टे धीर दोषविनिग्रहम् ॥
(18-9-94) सामान्यार्थ - हे धीर अरनाथ भगवन् ! आपका आभूषण, वस्त्र व शस्त्रादि से रहित तथा निर्मल ज्ञान, इन्द्रिय दमन व अपूर्व दया को झलकाने वाला रूप ही इस बात को प्रगट कर रहा है कि आपने मोहादि दोषों का क्षय कर डाला है।
O Passionless Lord Aranātha! Your physical form which is free from all vestiges of ornaments, clothes and weapons, and the embodiment of unalloyed knowledge, control of the senses, and benevolence, is a clear indication that you have vanquished all blemishes.
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