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Lord Dharmanātha
मानुषीं प्रकृतिमभ्यमतीतवान् देवतास्वपि च देवता यतः । तेन नाथ परमासि देवता श्रेयसे जिनवृष प्रसीद नः ॥
(15-5-75)
सामान्यार्थ - क्योंकि आपने साधारण मनुष्य के स्वभाव को अतिक्रान्त कर दिया था तथा सब देवों से भी आप पूज्य हैं, इस कारण से आप सर्वोत्कृष्ट देव हैं। हे धर्मनाथ जिनेन्द्र ! आप हमारे कल्याण के लिए हम पर प्रसन्न हों।
As you had transcended human tendencies and you are worshipped by the devas, you are the Supreme God. O Lord Jina, be the bestower of blessedness upon us!
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