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Lord Vimalanātha
the mutually supportive, general (sāmānya) and specific (visesa) attributes that encompass an object constitute exhaustive knowledge.
विशेष्यवाच्यस्य विशेषणं वचो यतो विशेष्यं विनियम्यते च यत् । तयोश्च सामान्यमतिप्रसज्यते विवक्षितात्स्यादिति तेऽन्यवर्जनम् ॥
(13-4-64) सामान्यार्थ - हे भगवन् ! वस्तु में सामान्य तथा विशेष दोनों धर्म विद्यमान हैं। जब सामान्य धर्म वाच्य होगा तब विशेष धर्म उसका विशेषण होगा। जब विशेष धर्म वाच्य होगा तब सामान्य धर्म उसका विशेषण होगा। वह वचन जिससे विशेष्य को नियमित किया जाता है वह विशेषण होता है
और जिसे नियमित किया जाता है वह विशेष्य होता है। आपके मत में उन विशेषण और विशेष्य में सामान्यपने का अतिप्रसंग नहीं आ सकता क्योंकि स्यात् या कथंचित् की अपेक्षा से दूसरे अविवक्षित् (अर्थात् जिसको कहने की अपेक्षा नहीं है) उसका परिहार हो जाता है।
O Lord! There may appear to be a mix-up in the speech (vācya) between the distinguishing characteristic (vićeşaņa) of the subject and the subject qualified (visesya) but, as you had asserted, the mix-up is resolved by the use of the word 'syāt' - literally, in some respect, thus excluding the absolute one-sided viewpoint - by the speaker, in order to distinguish the intended meaning from the unintended speculation.
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