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Lord Anantanatha
सामान्यार्थ - हे महामुनि ! आप ऐसे हैं, आप वैसे हैं - यह जो कुछ मुझ अल्प बुद्धि का स्तुति-रूप थोड़ा सा प्रलाप है, वह आपके सम्पूर्ण महात्म्य को न कहता हुआ भी अमृतमई समुद्र के स्पर्श मात्र से जैसे सुख होता है वैसे ही मोक्ष की प्राप्ति का कारण है।
O Supreme Ascetic! With my feeble intellect, I have tried to praise you with trivial expressions, 'You are like this,' 'You are like that.' Although these expressions are unable to portray your immense glory but still sufficient to bestow, like the mere touch of the nectar-ocean, the bliss of immortality.
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