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Svayambhūstotra
14 श्री अनन्तनाथ जिन
Lord Anantanātha
अनन्तदोषाशयविग्रहो ग्रहो विषङ्गवान्मोहमयश्चिरं हृदि । यतो जितस्तत्त्वरुचौ प्रसीदता त्वया ततोऽभूर्भगवाननन्तजित् ॥
(14-1-66) सामान्यार्थ - क्योंकि आपने अनादिकाल से अन्त:करण में विद्यमान अनन्त राग, द्वेष, मोह आदि दोषों के आधार मोहरूपी पिशाच को तत्त्वरुचि में अथवा सम्यग्दर्शन में प्रसन्नता धारण करने के लाभ से जीत लिया था इसीलिए आप अनन्तजित् इस सार्थक नाम को धारण करने वाले प्रभु कहलाते हैं।
O Lord Anantanātha! You had conquered the demon of delusion associated with your heart from beginningless time and which was the root cause of infinitude of blemishes in the being, through deep interest in the nature of reality. You are appropriately called Lord Anantajit (alias Lord Anantanātha) – the Victor of the Infinitude.
कषायनाम्नां द्विषतां प्रमाथिनामशेषयन्नाम भवानशेषवित् । विशोषणं मन्मथदुर्मदामयं समाधिभैषज्यगुणैर्व्यलीनयत् ॥
(14-2-67)
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