Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 41
________________ Svayambhūstotra श्री शम्भवनाथ जिन Lord Sambhavanātha त्वं शम्भवः संभवतर्षरोगैः संतप्यमानस्य जनस्य लोके । आसीरिहाकस्मिक एव वैद्यो वैद्यो यथाऽनाथरुजां प्रशान्त्यै ॥ (3-1-11) सामान्यार्थ - हे भगवन् ! आप भव्य जीवों के सुख का कारण हो तथा संसार सम्बन्धी विषय भोग की तृष्णा रुपी रोगों से पीड़ित मानव के लिए आप इस लोक में बिना किसी फल को चाहने वाले आकस्मिक वैद्य के सदृश उसी प्रकार प्रकट हुए थे जिस तरह कि किसी अशरण, निर्धन व असहाय मनुष्य के रोगों की शान्ति के लिए कोई परोपकारी वैद्य अकस्मात् सहाई हो जाता है। O Lord Sambhavanātha, the Bestower of Happiness! You had appeared in this world for the well-being of the people tormented by the desires of the senses, just like the fortuitous arrival of a selfless physician for curing the helpless and desperate patient of his disease. अनित्यमत्राणमहंक्रियाभिः प्रसक्तमिथ्याध्यवसायदोषम् । इदं जगज्जन्मजरान्तकार्तं निरञ्जनां शान्तिमजीगमस्त्वम् ॥ (3-2-12) 16

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