Book Title: Swayambhustotra
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

Previous | Next

Page 48
________________ Lord Abhinandananatha सामान्यार्थ - इस अचेतन जड़ शरीर में व इस जड़ शरीर के साथ आत्मा का संयोग होने के कारण जो आत्मा में कर्मों का बन्ध होता है व उसके फलस्वरूप जो सुख-दुःखादि होता है तथा परपदार्थों (स्त्री, पुत्र आदि) में ये मेरे हैं, मैं इनका स्वामी हूँ, इस मिथ्या अभिप्राय को ग्रहण करके, विनश्वर पदार्थों की अवस्थाओं में स्थायित्व के असत् निश्चय के कारण यह जगत् नष्ट हो रहा है अर्थात् जगत् के प्राणी कष्ट उठा रहे हैं। उन्हीं के उद्धार के लिए आपने यथार्थ जीवादि का स्वरूप समझाया है। तथा The man falls when he considers the transient objects as permanent; karmas are bound due to the association of the animate soul with inanimate and transient objects like the body, and consequent enjoyment of pleasure and pain, with psychic dispositions of attachment and aversion towards such objects. You had expounded the reality of substances for the redemption of mankind. क्षुदादिदुःखप्रतिकारतः स्थितिर्नचेन्द्रियार्थप्रभवाल्पसौख्यतः । ततो गुणो नास्ति च देहदेहिनोरितीदमित्थं भगवान् व्यजिज्ञपत् ॥ (4-3-18) सामान्यार्थ भूख, प्यास आदि दुःखों के प्रतिकार करने से अर्थात् भोजन - पानादि ग्रहण करते रहने से और इन्द्रियों के विषयों के द्वारा उत्पन्न होने वाले अतृप्तिकारी क्षणिक सुख से इस शरीर व शरीरधारी आत्मा की स्थिति सदा नहीं रहती है इस कारण उनसे उनका कुछ भी उपकार नहीं - 23

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246