Book Title: Supasnahachariyam Part 01
Author(s): Lakshmangani, Hiralal Shastri
Publisher: ZZZ Unknown
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सुपासनाह-चरिअम्मिजयकुंजरं महंतं जेणं गम्मइ विवाहठाणम्मि । जे आणवेइ देवो इय भणिऊणं गया पुरिसा ॥४७६॥ रायाएसो सम्बोवि साविओ तेहिं जह समाइटो । इत्तो धवलपसाहियसिंधुरखंध समारूढो ॥४७७।। पवणपणच्चिरधयवडसोहियमणहररहावरूढेण । उन्भडसिंगारेणं परियरिओ रायलोएणं ॥४७८॥ हरिसपरव्वसनचंततरुणिविंदावरुद्धरायपहो । वजंतसयलमंगलतूंररवाऊरियदियंतो ॥४७९॥ सुपइट्ठपयावइणाऽणुगम्ममाणो सुपासवरकुमरो । थुव्वंतो आसीसासएहिं कुलथेरनारीहिं ॥४८०॥ पायारभवणतलसंठिएण लोएण मुद्धलोयस्स । दंसिज्जंतो अंगुलिसहस्सेहिं कमेण संपत्तो ॥४८॥ वीवाहमंडवे अह पडिहारजणेण दारदेसम्मि । पडिरुद्धे इयरजणे परियरिओ रायलोएण ॥४८२।। अभिंतरे पविट्ठो कुमरो एत्थंतरम्मि लहुमेव । सोमावि तओ विवि पसाहिया विविहलोएणं ॥४८३॥ तहाहि;मणिमयकुंडलजुयलं तीसे सवणंतरेसु रेहेइ । तक्कालागयवम्महनरकइरहचकजुयलंय ॥४८४॥ लोलतो जीसे कंठकंदले सहइ नवसरों हारो। वयणरयणियरसंकाए आगओ तारयगणोव्व ॥४८५॥ जीसे नियंबबिंबे बद्धा पणवण्णरयणमयकंची। रेहइ हरिधणुरेहव्व गयणदेसम्मि वित्थिने ॥४८६॥ हिययम्मि अमायतुव्व झरइ जीसे कुमारअणुराओ। जावयरसरंजियचरणजुयलपडिबिंबकवडेणं ॥४८७॥ सा सविसेसपसाहणसाहिया मत्तकुंजरगईए । मंजीरमंजुसिंजणसवणागयहंसखलियगई ॥४८८॥ जयकुञ्जरं महान्तं येन गम्यते विवाहस्थाने । यदाज्ञपयति देव इति भणित्वा गताः पुरुषाः ॥४७६।। राजादेशः सर्वोऽपि श्रावितस्तैर्यथा समादिष्टः । इतो धवलप्रसाधितसिन्धुरस्कन्धं समारूढः ॥४७७॥ पवनप्रनर्तनशीलध्वजपटशोभितमनोहररथावरूढेन । उद्भटशृङ्गारेण परिकरितो राजलोकेन ॥४७॥ हर्षपरवशनृत्यत्तरुणीवृन्दावरुद्धराजपथः । वाद्यमानसकलमङ्गलतूररवापूरितदिगन्तः ॥४७९॥ सुप्रतिष्ठप्रजापतिनाऽनुगम्यमानः सुपाचवरकुमारः । स्तूयमान आशीःशतैः कुलस्थविरनारीभिः ॥४८०॥ प्राकारभवनतलसंस्थितेन लोकेन मुग्धलोकस्य । दर्श्यमानोऽङ्गुलिसहसैः क्रमेण संप्राप्तः ॥४८१॥ वीवाहमण्डपेऽथ प्रतिहारजनेन द्वारदेशे । प्रतिरुद्धः इतरजने परिकरितो राजलोकेन ॥४८२॥ अभ्यन्तरे प्रविष्टः कुमारोऽत्रान्तरे लध्वेव । सोमापि ततो विविधं प्रसाधिता विविधलोकेन ॥४८३॥ तथाहि;मणिमयकुण्डलयुगलं तस्याः श्रवणान्तरयो राजते । तत्कालागतमन्मथनरपतिरथचक्रयुगलमिव ॥४८४॥ लोलन् यस्याः कण्ठकन्दले राजते नवमालो हारः । वदनरजनिकरशङ्कयाऽऽगतस्तारकागण इव ॥४८५॥ यस्या नितम्बबिम्बे बद्धा पञ्चवर्णरत्नमयकाञ्ची । राजते हरिधनूरेखेव गगनदेशे विस्तणे ।।४८६॥ हृदयेऽमानिव क्षरति यस्याः कुमारानुरागः । यावकरसरञ्जितचरणयुगलप्रतिबिम्बकपटेन ॥४८७॥ सा सविशेषप्रसाधनसाधिता मत्तकुञ्जरगत्या । मञ्जीरमञ्जुसिजनश्रवणागतहंसस्खलितगतिः ॥४८॥
१ ग. रमणीहिं । २ क. यए अमाययं । ३. सोब्ध ।
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