Book Title: Supasnahachariyam Part 01
Author(s): Lakshmangani, Hiralal Shastri
Publisher: ZZZ Unknown
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चंपयमालाकहा।
१२१ तुम्हारिसाण सामिय ! विवेयवररयणरोहणगिरीण । करुणारससरसीए किमिमीए जुत्तमिय काउं॥ नियपाणञ्चाएणवि परपाणे रक्खिरं महइ एसा । को कुणइ जीवलोए पिय ! एवं मरणभीरुम्मि ? ॥ अन्नं च:नियदुचरियं इय संकडम्मि को पयडिउं तरइ एवं । जिणवयणं जस्स मणे न भावओ परिणयं होइ ? ॥ वोलीणा सावत्था जीए विसकंदली इमा आसि । ता वच्छल्लमिमीए जुत्तं एत्तो न दुहदाणं ॥२४८॥ उक्तं च;__ "सार्मिकवत्सलता कल्पलता सकलसंपदा प्रसवे । यस्मात्तस्मात्तत्रैव कृतधियः कुर्वते यत्नम् ॥" जुत्ताजुत्तं जाणइ देविच्चिय जंपिउं इय नरिंदो । चंपयमालाए समं संपत्तो नियंयभवणम्मि ॥२४९॥ पव्वाइयावि निव्वुयहियया निसुणेइ पइदिणं धम्मं । देवीइ संनिहाणे कुणइ य जहसत्ति गिहिउचियं ॥ पच्छायावदवानलकवलियहियया विसोवओगेण । अह दुल्लहदेवीवि हु इच्छइ नियजीवियं चइउं ॥२५१॥ इय तीए ववसिय नाउमित्थ चूडामणीए लहुमेव । तत्तो चंपयमाला संपत्ता तस्समीवम्मि ॥२५२।। पुच्छइ किं तुम्ह करे पाएसुनिवडिऊण सा भणइ। जं किंपि मुणह तुब्भे,को हेऊ, मुणह जं तुब्भे ॥२५३२॥ जपइ चायमाला एयस्स न होइ एस पडियारो । वजह य अयसपडहो तिण्ह जुण्हुजलकुलाणं ॥२५४॥ एवं एवं धम्म कुणमाणा गमह कइवि दियहाइं । पडियारम्मि उवायं इमस्स समए कहिस्सामि ॥२५५।। अवयारउवयारपरायणाए परछिदपिहणवसणाए । तुज्झ नमो तुज्झ नमो सफलीकयसुकुलजम्माए ॥२५६॥ युष्मादृशां स्वामिन् ! विवेकवररत्नरोहणगिरीणाम् । करुणारससरस्याः किमस्या युक्तमिति कर्तुम् ? ॥२४५॥ निजप्राणत्यागेनापि परप्राणान् रक्षितुं कासत्येषा । कः करोति जीवलोके प्रिय ! एवं मरणभीरौ ? ॥२४६॥ अन्यच्च, निजदुश्चरितमिति संकटे कः प्रकटयितुं शक्नोत्येवम् । जिनवचनं यस्य मनसि न भावतः परिणतं भवति ? ॥२४७॥ अतिक्रान्ता सावस्था यस्यां विषकन्दलीयमासीत् । तस्माद वात्सल्यमस्या युक्तमितो न दुःखदानम् ॥२४८॥ युक्तायुक्त जानति देव्येव जल्पित्वेति नरेन्द्रः । चम्पकमालया समं संप्राप्तो निजकभवने ॥२४९॥ प्रवाजिकापि निवृतहृदया शृणोति प्रतिदिनं धर्मम् । देव्याः संनिधाने करोति च यथाशक्ति गृयुचितम् ॥२५०॥ पश्चात्तापदवानलकवलितहृदया विषोपयोगेन । अथ दुर्लभदेव्यपि खल्विच्छति निजजीवितं त्यक्तुम् ॥२५१॥ इति तस्या व्यवसितं ज्ञात्वाऽत्र चूडामणिना लध्धेव । ततश्चम्पकमाला संप्राप्ता तत्समीपे ॥२५२॥ पृच्छति किं तव करे पादयोर्निपत्य सा भणति । यत् किमपि जानीत यूयं, को हेतुः, जानीत यं यूयम् ॥२५३॥ जल्पति चम्पकमालैतस्य न भवत्येष प्रतिकारः । वाद्यते चायशःपटहस्त्रयाणां ज्योत्स्नोज्ज्वलकुलानाम् ॥२५४॥ एवमेवं धर्म कुर्वाणा गमय कत्यपि दिवसानि । प्रतिकार उपायमस्य समये कथयिष्यामि ॥२५॥ अपकारोपकारपरायणायै परच्छिद्रपिधानव्यसनायै । तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमः सफल कृतसुकुलजन्मायै ॥२५६॥
१ ख. भीमम्मि ।
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