Book Title: Sunil Prakrit Samagra
Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 14
________________ हमने उनकी प्राकृत कृतियों को पढ़ा तो हमें आप साक्षात् कुन्दकुन्द के लघुनन्दन लगते हैं। आचार्यश्री सुनीलसागरजी द्वारा विरचित कृतियाँ - 1. इष्टोपदेश 3. पथिक 5. मेरी सम्मेदशिखर यात्रा (यात्रा वृत ) (प्राकृत) (काव्यसंग्रह) (यात्रावृत्तान्त) 12. मानवता के आठ सूत्र (कविताएँ) (यात्रावृत्तान्त) (वार्ता) (प्राकृत) (प्राकृत व्याकरण) (व्याख्या) (कवितासंग्रह) (जीवनवृत्त) (चिन्तन) (चरित्र) 7. भावालोयणा 9. अहिंसावतार 11. काशी दर्शन 13. बिना पूँछ का बन्दर 15. यात्रा के संस्मरण 17. धरती के देवता 19. णीदी संगहो 21. प्राकृत बोध 23. तत्त्वार्थ सूत्र 25. सौ कविताएँ 27. अनूठा तपस्वी 29. यात्रा - अर्न्तयात्रा 31. भद्दबाहुचरियं 33. चिन्तन यात्रा 35. अनुत्तर तपस्वी 37. वयणसा 38. धम्मो मंगलं (व्याख्या) (उपन्यास) 2. विश्व का सूर्य 4. कालजयी कविताएँ 6. वसुनन्दि श्रावकाचार 8. दूसरा महावीर 10. जैनाचार विज्ञान 14. संक्षिप्त जैन इतिहास 16. ब्रह्मचर्य विज्ञान 18. भावणासा 20. दी संग 22. अज्झप्पसारो 24. अध्यात्मसार शतक 26. आत्मोदय शतक 28. भाव निर्झर 30. मेरी दक्षिण यात्रा 32. दो प्रवचन (यात्रावृत्त) 34. मौन तपस्वी (जीवनवृत्त) (प्राकृत) (प्रवचन) 36. णियप्पज्झाणसारो 38. सम्मदि-सदी 40. जो है सो है (जीवनवृत्त) (कविताएँ) (व्याख्या) (जीवनवृत्त) (आलेख) (निबन्ध) (आलेख) (आलेख) (प्राकृत) (प्राकृत) (प्राकृत) (मराठी प्रवचन) (यात्रावृत्त) (प्रवचन) (जीवनवृत्त) (प्राकृत) (प्राकृत) (कविताएँ) आचार्य सुनीलसागरजी महाराज की प्रमुख कृतियों का परिचयदी संगहो (स्तुति संग्रह ) - श्रमण संस्कृति में स्तुति का सातिशय महत्त्व है, क्योंकि यह प्रभुभक्ति का एक सशक्त माध्यम है। साथ ही स्तुति करने वाला स्वयं भी स्तुत्य बन जाता है। स्तुतियों की प्राचीन परम्परा है, जिसे आगे बढ़ाते हुए परम पूज्य आचार्यश्री सुनीलसागरजी ने अपनी काव्य प्रतिभा का प्रभाव छोड़ते हुए शौरसेनी प्राकृत के विभिन्न सरस छन्दों में स्तुतियों की रचना की है। जैसे ऋषभजिन स्तुति, गोम्मटेश अष्टक, शान्तिनाथ स्तुति, पार्श्वनाथ स्तुति, वर्धमान स्तुति आदि स्तुतियाँ एवं अष्टक हैं । अन्त में रत्तिभोयण चाग - पसंसा और जन-जन के हृदय में स्थित पंडित जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' द्वारा रचित मेरी भावना का 'मज्झ भावणा' नाम से प्राकृत भाषा के गाथा छन्द में रूपान्तरण किया है, जो मेरी भावना की भाँति ही जन-जन का कल्याण करने में समर्थ है। बारह

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