Book Title: Sunil Prakrit Samagra
Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ जाते थे। आचार्यश्री सन्मतिसागरजी महाराज ने अपने आचार्यकाल में 175 दीक्षाएँ प्रदान की हैं। आचार्य श्री के द्वारा दीक्षित कुल 13 साधु तो आचार्य परमेष्ठी होकर स्वपर हित कर रहे हैं। चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री सुनीलसागरजी महाराज का परिचय एवं व्यक्तित्त्व अश्विन कृष्ण दशमी वि. सं. 2034 तदनुसार 7 अक्टूबर 1977 को मध्यप्रदेश के सागर मंडलान्तर्गत 'तिगोड़ा' (हीरापुर ) नामक ग्राम में पूज्य आचार्यश्री का जन्म हुआ। आपके गृहस्थ जीवन के माता-पिता का नाम क्रमशः श्रीमती मुन्नीदेवीजी जैन एवं श्रीमान भागचन्दजी जैन है। आपकी बाल्यावस्था का नाम संदीप कुमार जैन था । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा किशुनगंज (दमोह) में तथा उच्च शिक्षा सागर के श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय में सम्पन्न हुयी । पूर्व के कई भवों के संस्कार, माता-पिता के सरल व्यक्तित्त्व, अध्ययन के दौरान मिलने वाली सत्संगति तथा आध्यात्मिक रुचि होने से शास्त्री एवं बी. कॉम की परीक्षाओं के मध्य ही वैराग्योन्मुखी हो गए। 20 वर्ष की अल्पायु में ही 20 अप्रैल, 1997 को महावीर जयन्ती के पावन दिन बरुआसागर (झाँसी) में आचार्य श्री सन्मतिसागरजी ने आपके अदभ्र दृढ़संकल्प एवं वैराग्य की उत्कटता को सूक्ष्मदृष्टि से परख कर जैनेश्वरी दिगम्बर दीक्षा अपार जन समूह के बीच प्रदान की गयी । तथा जैन समाज को मुनि सुनीलसागर के रूप में युवा मनीषी मुनिरत्न प्राप्त हुआ । सरलस्वभावी, मृदुभाषी, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, बहुभाषाविद्, मितभाषी, उत्कृष्ट साधक, मार्मिक प्रवचनकार, सकारात्मक विचारक, समर्पित शिष्य, अनुशासक, आत्मानुशासी आदि विशिष्ट गुणों की गन्ध से आपका व्यक्तित्त्व धीरे - धीरे चहुँ ओर महकने लगा । आपकी इस बहुमुखी प्रतिभा से प्रभावित होकर आचार्यश्री ने अपने जन्म दिवस माघ शुक्ल सप्तमी दिनांक 25 जनवरी, 2007 को औरंगाबाद में आपको अपने ही हाथों से आचार्य पद हेतु संस्कारित किया । आचार्य पद प्रदान करने के बाद अधिक धर्म प्रभावना करने के लिए तथा जीवन में स्वतन्त्र संघ के साथ विहार करते हुए आत्मानुशासन बनाये रखने हेतु गुरुदेव ने आपको अलग विहार करने की आज्ञा प्रदान की। अडूल, सोलापुर, नाते - पूते चातुर्मास व दक्षिण यात्रा के बाद पुनः आपको गुरुदेव के दर्शन करने एवं चरण सानिध्य में रहने का लाभ मिला । 23 मई, 2010 को कुंजवन (उदगाँव) की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में अनन्तवीर्य भगवान की 43 फुट ऊँची प्रतिमा को आपके द्वारा सूरिमन्त्र दिया गया । पश्चात् गुरुदेव की आज्ञा से गोरेगाँव (मुम्बई) चातुर्मास हेतु विहार किया तथा उनके आदेश से चातुर्मास के बाद मुम्बई के उपनगरों में खूब धर्म प्रभावना की । गुरुदेव के अन्तिम समय में जैसे ही उनकी सेवा सुश्रूषा करने के लिए आपने पत्र के माध्यम से अपनी दस

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 412