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८ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
* रज - छाछ, दही आदि रसों में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म शरीर जीव। * संस्वेदज - पसीने से उत्पन्न होने वाले खटमल, यूका (जू) आदि जीव। * औपपातिक - उपपात का अर्थ है - अचानक घटित होने वाली घटना। देवता
और नारकी जीव एक मुहूर्त के भीतर ही पूर्ण युवा बन जाते हैं, इसलिए
इन्हें औपपातिक-अकस्मात् उत्पन्न होने वाला कहा है। ३. दसवेआलियं, ४/९. ४. उत्तराध्ययनशान्त्याचार्यवृत्ति, पत्र-२४४, त्रस्यन्ति-तापाद्युपत्पौ छायादिकं
प्रत्यभिसर्पन्तीति त्रसा: - द्वीन्द्रियादयः। ५. आयारो, ९/१/१२, पुढविं च आउकायं तेउकायं च वाउकायं च। '
पणगाइं बीय-हरियाई, तसकायं च सव्व सो णच्चा।। ६. वही, ९/१/१४,-अदु थावरा तसत्ताए, तसजीवा य थावरत्ताए। ७. दसवेआलियं, ४/३. ८. वही, ४/११. ९. उत्तरज्झयणाणि, ३६/६९, पुढवी आउजीवा उ तहेव य वणस्सई।
इच्चेए थावरा तिविहा........।। १०. वही, ३६/१०७, तेऊ वाऊ य बोद्धव्वा, उराला य तसा तहा।
इच्चेए तसा तिविहा..........।। ११. ठाणं, ३/३२६-३२७. १२. जीवाजीवाभिगम, १/११, ......'दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता'
ते एवमाहंसु तं जहा-तसा चेव थावरा चेव। १३. वही, १/१२, थावरा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया आउकाइया
वणस्सइकाइया। १४. वही, १/७५, तसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-तेउक्काइया वाउक्कइया ओराला
तसा। १५. तत्त्वार्थसूत्र, २/१३, १४, पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः। तेजोवायू
द्वीन्द्रियादयश्च त्रसा:। १६. तत्त्वार्थवार्तिक, २/१३, १४, पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय: स्थावराः।
द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः। १७. स्थानांग, २/१६४-१६६, दो काया पण्णत्ता, तं जहा-तसकाए चेव
थावरकाए चेव। तसकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवसिद्धिए चेव अभवसिद्धिए चेव। थावरकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवसिद्धिए चेव अभवसिद्धिए चेव।
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