Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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त्रस - स्थावर का विभाग :
९
१८.वही, ५/१९,२० पंच थावरकाया पण्णत्ता, तं जहा-इंदे थावरकाए, बंभे
थावरकाए, सिप्पे थावरकाए सम्मती थावरकाए पायावच्चे थावरकाए। पंच थावरकायाधिपती पण्णत्ता, तं जहा-इंदे थावरकायाधिपती बंभे थावरकायाधिपती
सिप्पे थावरकायाधिपती सम्मती थावरकायाधिपती, पायावच्चे थावरकायाधिपती। १९. स्थानांगवृत्ति, अभयदेव, (पृ० १९६) स्थावरनामकर्मोदयात् स्थावरा:-पृथिव्यादयः
तेषां कायाराशयः स्थावरो वा काय:-शरीरं येषां ते स्थावरकायाः इन्द्रसम्बन्धित्वात् इन्द्र: स्थावरकाय: पृथिवीकाय:, एवंब्रह्मशिल्पसम्मतिप्राजापत्या अपि अप्कायादित्वेन
वाच्या इति।......... २०. दसवेआलिय, ४/९. २१.पण्णवणा, १/१९. २२. उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य वृत्ति, पत्र-६९३, दुविहा खलु तसजीवा-लद्धितसा
चेव गतितसा चेव। ततश्च तेजोवाय्वोर्गतित उदाराणां च लब्धितोऽपि त्रसत्वमिति। तेजोवाय्वश्च स्थावरनामकर्मोदयेऽप्युक्तरूपं त्रसनमस्तीति त्रसत्वम्।
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