________________
दिगम्बर जैन जातियाँ : उद्भव एवं विकास : १५
अग्रवाल जाति की उत्पति अग्रोहा से मानी जाती है। अग्रोहा हरियाणा प्रदेश के हिसार जिले में स्थित है। प्राचीन काल में यह एक ऐतिहासिक नगर था। सन् १९३९-४० में जब यहां के एक टीले की खुदाई हुई तो उसमें तांबे के सिक्कों पर अंकित कर्ण, गज, वृषभ, मीन, सिंह, चैत्य, वृक्ष आदि के जो चिन्ह प्राप्त हुए हैं, उन्हें जैन मान्यता की ओर स्पष्ट संकेत माना जा सकता है। अग्रोहे का नाम अग्रोहक भी रहा है। जनश्रुति के अनुसार अग्रोहा में राजा अग्रसेन राज्य करता था। इसी से अग्रवाल जाति का उद्भव हुआ। लेकिन इसके अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिल सके हैं। कविवर बुलाखीचन्द ने अग्रवाल जाति की उत्पत्ति एक ऋषि द्वारा मानी है तथा लोहाचार्य द्वारा अग्रवालों को जैन धर्म में दीक्षित करना माना है। अग्रवालों के १८ गोत्र रहे हैं जिनके नाम निम्न प्रकार हैं
गर्ग, गोयल, सिंघल, मुंगिल, तायल, तरल, कंसल, बछिल, एरन, ढालण, चिन्तल, मित्तल, जिंदल, किंघल, हरहरा, कंछिल, पुखन्या एवं बंसल।
- एक दिगम्बर पट्टावली के अनुसार वि० सं० ५६५ में मुनि रत्नकीर्ति हुए जो अग्रवाल जाति के थे। देहली के तोमरवंशीय शासक अनंगपाल के शासन काल में रचित पासणाहचरिउ के अनुसार कवि श्रीधर स्वयं अग्रवाल जैन थे तथा अपने लिए "अयरवाल कुल संभवेन' लिखा है। पासणाहचरिउ को लिखाने वाले नट्टलसाहु स्वयं जैन अग्रवाल थे। अलीगढ़ प्रदेश के निवासी साहू पारस के पुत्र टोडर अग्रवाल ने मथुरा में ५१४ स्तूपों का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी। साहू पांडे राजमल्ल ने संवत् १६४२ में जम्बूस्वामीचरित्र की रचना की थी। अपभ्रंश के महान कवि रइधू के आश्रयदाता अधिकांश अग्रवाल श्रावक थे। आदित्यवारकथा के रचयिता भाउ कवि स्वयं अग्रवाल जैन थे। राजस्थान के जैन ग्रंथ भण्डारों में अग्रवाल श्रावकों द्वारा लिखवाई हुई हजारों पाण्डुलिपियां संग्रहीत हैं।
, मंदिरों एवं मूर्तियों के निर्माण में भी अग्रवाल जैन समाज का महत्वपूर्ण योगदान है। ग्वालियर किले की अनेक सुन्दर मूर्तियों का निर्माण अग्रवाल जैनों ने कराया था। दिल्ली के राजा हरसुखराय सुगनचन्द ने अनेक जिन मंदिरों का निर्माण कराया था। इस प्रकार अग्रवाल जैन समाज दिगम्बर जैन समाज का प्रमुख अंग है जो वर्तमान में देश के प्रत्येक भाग में बसा हुआ है। देश में अग्रवाल जैनों की संख्या १० लाख से अधिक मानी जाती है। ३. परवार
दिगम्बर जैन परवार जाति का प्रमुख केन्द्र मध्यप्रदेश का सागर और जबलपुर तथा उत्तर प्रदेश में झाँसी जिले का ललितपुर माना जाता है। इस समाज के श्रावक एवं श्राविकाएं आचार-व्यवहार में धर्मनिष्ठ और प्राचीन परम्पराओं के अनुयायी हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org