________________
गाँधी एवं शाकाहार
डॉ० शैलबाला शर्मा*
महात्मा गाँधी का उद्देश्य किसी जीवन दर्शन का विकास या मान्यताओं एवं आदर्शों की प्रणाली निर्मित करना नहीं था। ऐसा करने की न ही उनमें कोई अभिलाषा थी और न ही उनके पास इतना वक्त था। वे मूलत: सत्य और अहिंसा के पुजारी थे और इसके पालन में ही उनका दृढ़ विश्वास था। उन्होंने अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। कोई भी समस्या चाहे राजनैतिक हो, सामाजिक हो, धार्मिक, औद्योगिक, कृषि एवं श्रम सम्बन्धी हो; सभी के व्यावहारिक पहलुओं का इन्होंने सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन किया। सभी को गाँधी ने यथार्थ के धरातल पर रख कर निपटाने का प्रयत्न किया। यही नहीं बल्कि व्यक्तिगत जीवन की सूक्ष्म से सूक्ष्म समस्यायें जैसे आहार, वस्त्र, जाति प्रथा, अस्पृश्यता को भी इन्होंने बहुत महत्व प्रदान किया। भारतीय समाज एवं संस्कृति से सम्बन्धित कोई भी पहलू ऐसा अछूता नहीं जिसे इन्होंने प्रभावित नहीं किया। इसी में से एक पहलू है शाकाहार (अन्नाहार)।
शाकाहार के सम्बन्ध में गाँधीजी का मानना था कि “मनुष्य शरीर की रचना देखने से शाकाहारी ही लगती है। उसके दांत, अमाशय इत्यादि उसे शाकाहारी सिद्ध करते हैं।" इन्होंने स्वीकार किया है "मैं शाकाहार का पक्षपाती हूँ" लंदन की वेजिटेरियन सोसाइटी के साप्ताहिक मुख पत्र 'वेजिटेरियन मेसेन्जर' में समय-समय पर गाँधी के अन्नाहार सम्बन्धी विचार प्रकाशित होते रहे हैं। इनके संकलित रूप को नीचे प्रस्तुत किया गया है:
"भारत में करोड़ों लोग निवास करते हैं। वे भिन्न-भिन्न जातियों एवं वर्गों के हैं। हिन्दू मुख्यत: चार वर्गों में बंटे हुए हैं - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इन सबमें सिद्धान्त की दृष्टि से तो केवल ब्राह्मण और वैश्य ही शुद्ध शाकाहारी हैं, परन्तु व्यवहार में प्राय: सभी भारतीय अन्नाहारी हैं। कुछ लोग स्वेच्छा से अन्न का आहार करने वाले हैं, परन्तु शेष के लिये अन्नाहार आवश्यक है।.... भारतीय अर्थात् भारतीय अन्नाहारी-माँस, मछली और मुर्गी के अलावा अण्डे खाने से भी परहेज करते हैं। उनका तर्क यह है कि अण्डा खाना जीवहत्या करने के बराबर है, क्योंकि यदि अंडे को छेड़ा न जाये तो स्पष्ट है कि उससे बच्चा पैदा होगा परन्तु जिस तरह यहाँ के कट्टर अन्नाहारी दूध और मक्खन से भी परहेज करते हैं, वैसा भारतीय अन्नाहारी नहीं * शोध अधिकारी, त्रिलोक उच्च स्तरीय अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान, कोटा (राज.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org