________________
१०२ :
श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००३
उनकी सेवा में हाज़िर होकर दिया। दादी माँ यह सहन न कर सका और विलाप करते हुए उसी समय अपना शरीर छोड़ दिया।
उधर, दशम गुरु के दोनों सुपुत्रों और माता जी के मृत शरीर दो दिन से सरहिंद में पड़े हुए थे। किसी का हौसला न था कि नवाब से जाकर इन को माँग सके। अंत में दीवान टोडरमल ने विनती की कि "बादशाह सलामत, ये तीनों मृतक शरीर मुझे देने की कृपा करें ताकि मैं रीति के मुताबिक इनका संस्कार कर सकूँ"। नवाब ने कहा कि हम एक शर्त पर ही दे सकते हैं कि संस्कार के लिए जितनी जगह चाहिये उतने स्थान में सोने के सिक्के बिछाकर, आप उसकी कीमत अदा करें।
दीवान टोडरमल के लिए स्वर्ण मोहरों की कीमत इन लालों से ज्यादा कीमती नहीं थी। उसने शर्त मान ली और सोने की अशर्फियों के बदले भूमि लेकर बहुत श्रद्धा के साथ दोनों साहिबज़ादों और माता जी का अंतिम संस्कार किया।
सरहिंद में टोडरमल की हवेली और वहां की चन्नी रोड पर टोडर माजरा गाँव इस लुप्त होते इतिहास के अवशेष हैं। तथा गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप (सरहिंद) के विशाल कक्ष में “दीवान टोडरमल जैन हॉल' का बोर्ड पढ़ कर प्रत्येक जैन का सिर श्रद्धा से झुक जाता है।
जैनों ने कराया गुरुद्वारा का निर्माण
सन् १९४४ के अंत में पटियाला के नाज़िम साहब (डिप्टी कमिश्नर) महाराजा का यह आदेश लेकर सामाना में आए कि अपना बलिदान देने हेतु दिल्ली जाते हुए सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर जी जिस स्थान पर थोड़ा समय रुके थे, वहां पर “थड़ा साहिब" गुरुद्वारा का कमरा (कोठा) बनवाया जाए। सामाना की "प्रेम सभा” और “जैन पुजेरा पंचायत" को यह कार्य सुपुर्द हुआ। नगर के तत्कालीन प्रतिष्ठित व्यक्ति - सागरचंद जैन, नाज़रचंद जैन, साधुराम जैन, मदनलाल बंसल, भगत नौराता राम, भगत मदनलाल, भगत मोहनलाल, जगमिंदरलाल जैन, शीतलदास जैन आदि इस काम में जुट गए। कार्य सम्पन्न होने पर तीन दिन तक, लगातार, गुरुद्वारा के नये कमरे में शब्द कीर्तन होता रहा। पूरे सामाना शहर में एक भी केशधारी सिख नहीं था। अत: नाज़रचंद जैन खुद अमृतसर गए और सरदार ईशर सिंह मडैल तथा शिरोमणि कमेटी की एक महिला सदस्य को एक दिन के लिए अपने साथ लेकर आए। सभी ने मिलकर गुरुद्वारा के नए कमरे में श्री ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया। उस दिन पटियाला रियासत के महाराजा साहिब भी वहां पधारे थे। शहर के जैनों का और प्रेम सभा का उन्होंने आभार माना और प्रशंसा की।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org