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खरतरगच्छ - भावहर्षीय शाखा का इतिहास : ९९
लुप्त गच्छों या उसकी शाखाओं की भांति इस शाखा का भी अस्तित्त्व केवल इतिहास के पृष्ठों तक ही सीमित है। सन्दर्भ: १. महोपाध्याय विनयसागर, “खरतरगच्छीय साहित्यसूची", मणिधारी जिनचन्द्रसूरि
अष्टम शताब्दी स्मृति ग्रन्थ, (संपा० अगरचंद नाहटा एवं भंवरलाल नाहटा) दिल्ली १९७१ ई०, भाग २, पृष्ठ ५८. २. अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा, संपा० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, श्री
अभय जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ८, कलकत्ता वि०सं० १९९४, पृष्ठ ८२, १३५-३६. शितिकंठ मिश्र - हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, भाग २, वाराणसी
१९९४ ई०, पृष्ठ ६११. । ३-४. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगर्जरकविओ, नवीन संस्करण, भाग २,
संपा० - डा० जयन्त कोठारी, अहमदाबाद १९८७ ई०, पृष्ठ १५३-५४. ५. मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृतिग्रन्थ, भाग २, “खरतरगच्छव साहित्यसूची', पृष्ठ ६६. '६-७. देसाई, पूर्वोक्त, नवीन संस्करण, भाग ३, पृष्ठ १९६. ८. वही, भाग ३, पृष्ठ १८. . ९. वही, भाग ३, पृष्ठ १४८-४९. १०.खरतरगच्छीयसाहित्यसूची, पृष्ठ ४३. 88. Vidhatri Vora - Ed. Catalogue of Gujarati Mss. Muniraj Shree
Punya VijayaJis Collection, L.D. Series No. 71, Ahmedabad 1978,
P. 553-54. १२. खरतरगच्छीयसाहित्यसूची, पृष्ठ ४३. १३. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ २१९. १४. वही, भाग २, पृष्ठ ४२. १५.खरतरगच्छीयसाहित्यसूची, पृष्ठ ५१. १६. महोपाध्याय विनयसागर, नाकोडा तीर्थ श्री पार्श्वनाथ, कुशल पुष्प-१, कुशल ___संस्थान, जयपुर १९८८ ई०, पृष्ठ १२८.
१७-१९. वही, लेखांक ११०, १११, ११२. • २०. ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, पृष्ठ ८२-८३
२१.विनयसागर जी से प्राप्त व्यक्तिगत सूचना पर आधारित।
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