Book Title: Sramana 2003 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 79
________________ गाँधी एवं शाकाहार : ७३ हिताय' पर आधारित है। यहाँ के अधिकांश व्यक्तियों में अहिंसा, दया, परोपकार आदि की भावना व्याप्त है। वे ऐसा कोई भी कर्म नहीं करना चाहते जिससे किसी प्राणी को पीड़ा या कष्ट हो अथवा किसी को ठेस पहँचे। जिन व्यक्तियों में ऐसी भावना निहित हो वे मांसाहार की कल्पना भी नहीं कर सकते। कुछ लोगों का मानना है कि कुछ विशिष्ट वनस्पतियों के भक्षण से भी हिंसा होती है। इस बात को गाँधी ने भी आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये कहा है कि मांस भक्षण और वनस्पति भक्षण दोनों में हिंसा है। परन्तु एक वस्तु के बिना मनुष्य कहीं भी नहीं जी सकता। दूसरे (मांसाहार) के बिना प्राय: सभी जगह जी सकता है। यदि जीव जीव में दु:ख के ज्ञान का भेद है तो जो दुःख गाय को • मरने के समय होता है वह वनस्पति जीव को नहीं हो सकता। जीव मात्र के लिये कुछ न कुछ हिंसा अपरिहार्य है। अर्थात गाँधीजी अनिवार्य हिंसा को स्वीकारते थे। भारत में निवास करने वाली जनसंख्या का केवल १० प्रतिशत भाग ही मांसाहारी है शेष ९० प्रतिशत शाकाहारी प्रवृत्ति के हैं। आधुनिकता के इस युग में मांसाहारी भोजन का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। यह वृद्धि मुख्यत: भूमण्डलीकरण की देन है। इस बढ़ती मांसाहारी प्रवृत्ति पर शीघ्र नियंत्रण की आवश्यकता है। लोगों में व्याप्त यह भ्रम कि मांस से शरीर बलिष्ठ बनता है मिथ्या है। शरीर के पोषण के लिये मांस खाना आवश्यक नहीं। शाकाहारी मनुष्य शारीरिक शक्ति, मन और बुद्धि आदि बातों में मांसाहारी से किसी भी रूप में कम नहीं होते। इसके विपरीत शाकाहारी व्यक्तियों में दृढ़ता एवं सहनशक्ति तथा कार्यक्षमता अधिक होती है। मांसाहारी व्यक्तियों में सहनशीलता और स्थिरता का नितांत अभाव होता है। इसके सेवन से मनुष्य का विवेक, मानवीयता व नैतिकता नष्ट हो जाती है तथा हिंसा, अमानुषिकता, द्वेष, निर्दयता एवं दुष्कर्मों की भावना जाग्रत हो जाती है। यही तत्व मनुष्य को अनुचित कार्य करने के लिये प्रेरित करते हैं। मांसाहार के आर्थिक तत्वों की ओर भी गाँधी ने ध्यान आकर्षित किया है। आर्थिक दृष्टि से यदि गौर करें तो पाते हैं कि शाकाहार की तुलना में मांसाहार कई गुना अधिक मंहगा होता है। मांसाहार मुख्य भोजन नहीं है अपितु मांस को खाने के लिये शाकाहार की भी आवश्यकता होती है। केवल मांस ही मांस नहीं खाया जा सकता परन्तु सूखी रोटी खाई जा सकती है। एक स्थान पर गाँधी कहते हैं: "अंग्रेज मांसाहारियों को देखिये। वे मानते हैं कि मांस उनके लिये अनिवार्य है। रोटी उन्हें मांस खाने में मदद करती है। दूसरी ओर भारतीय मांसाहारी मानता है कि मांस उसे रोटी खाने में मदद करेगा।''६ उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गाँधीजी जो अहिंसा के पुजारी थे पूर्णत: शाकाहार के समर्थक एवं मांसाहार विरोधी थे। शाकाहार एवं मांसाहार पर समय-समय पर सम्पूर्ण विश्व में बहस छिड़ती रही है। इसी संदर्भ में गाँधी द्वारा लिखित एक पत्र जो उन्होंने डर्बन के दैनिक समाचार पत्र 'नेटाल मर्करी' के सम्पादक को ३ फरवरी १८९६ में लिख था, उल्लेखनीय है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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