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श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००३
ही मानना पड़ेगा। प्राय: सभी वैदिक आचार का फल भौतिक सुख समृद्धि के साथसाथ आत्मोन्नति भी कहा गया है। प्रायः सभी धार्मिक अनुष्ठान "धर्मार्थकाममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थफलसं सिद्धयर्थम्' इस संकल्प के साथ किये जाते हैं। अत: धार्मिक आचार में पूजा, भजन, होम-हवन आदि कर्मकांड का प्राधान्य होता है। इसके विपरीत श्रावकाचार में अहिंसा आदि व्रत और इन व्रतों के पालन में त्याग, तप आदि आचार पर अधिक बल दिया गया है। व्रतों एवं उनके अतिचारों का ऐसी मतिसूक्ष्मता से प्रस्तुत वर्णन किन्हीं अन्य धर्मशास्त्रों में नहीं मिलता। समचित्त भाव से सोचने पर यह स्पष्ट होता है कि इन व्रत-नियमों का सीधा संबंध सामाजिक सुख शांति से ही है।
व्रत का अर्थ है पाप कर्म से विरति। हिंसा, अनृत (असत्य), चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह - ये पांच पाप कर्म हैं। इन से पूर्ण विरति महा व्रत हैं जो श्रमण अर्थात् मोक्षसाधक साधुओं के लिए हैं। गृहस्थ जीवन व्यतीत करनेवाले श्रावकों को जितनी व्यवहार्य है उतनी विरति अणुव्रत है। मद्य, मांस, द्युत (जुआ) तथा हिंसा आदि पांच पाप कर्मों का त्याग - ये आदर्श श्रावक के गुण हैं। कोई दुष्कर्म कृत, कारित एवं अनुमत समान रूप से पाप कहा गया है। श्रावक गुणों पर कितनी गंभीरता से विचार किया गया है उसके कुछ उदाहरण देखें। साथ ही साथ इनमें से अधिकांश नियम आज भी प्रासंगिक हैं यह स्पष्ट होगा।
१. हिंसा से विरति - किसी जीव को कष्ट पहुंचाने के लिए किया हुआ कार्य हिंसा है। इसमें मनोवृत्ति का बड़ा महत्त्व माना गया है। हिंसा के कई प्रकार हो सकते हैं। किसी जीव को चाकू जैसे साधन से क्षति पहुंचाना, बंधन में रखना, पीड़ा देना, क्षमता से अधिक भार लादना, खाने-पीने से वंचित रखना - ये सब स्थूल हिंसा के उदाहरण हैं। वैदिक परंपरा में यज्ञ के समय पशुबलि की प्रथा प्रचलित थी
जो सामाजिक विरोध के कारण कम हुई है। आगे चल कर जब यथार्थ पशु की जगह पिष्ट पशु जैसे पशुप्रतीक का यज्ञ में प्रयोग किया गया तब भी उसे जैनाचार्यों ने हिंसा करार कर दिया क्यों कि सूक्ष्म विचार करने पर यह स्पष्ट होगा कि यज्ञ करने वाला मन में पशु को ही मारता है।
बड़े खेद की बात है कि आज भी नवरात्रि आदि पर्यों में हजारों पशु धर्म के नाम पर मारे जाते हैं। आज कल सभी सभ्य समाजों में अकारण जीवहिंसा को कानून से निषिद्ध एवं दंडनीय माना जाता है। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में प्राणि हिंसा के विरुद्ध कानून बनाये गये जो परिष्कृत रूप में आज भी प्रचलित हैं। कानून के बावजूद धार्मिक श्रद्धा का समर्थन करते हुए देश में पशु बलि की प्रथा आज भी जारी है।
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