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६२ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००३
के शारीरिक और मानसिक पक्ष के साथ-साथ उसके आध्यात्मिक पक्ष को भी समझता है। आधुनिक समकालीन विचारक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, रविन्द्र नाथ टैगोर, पं० जवाहर लाल नेहरू, राधाकृष्णन इत्यादि भी स्वीकारते हैं कि मानव समाज का नैतिक उत्थान तभी हो सकता है जबकि उसके विचार और कर्म में तालमेल हो परन्तु आज के भौतिकवादी एवं पाश्चात्य सभ्यता के वाहक, मानव समाज को अध्यात्म के मार्ग पर चलने में अवरोध पैदा कर रहे हैं, जो समाज एवं देश के लिए घातक है। नेमिचन्द्र शास्त्री कहते हैं - "आचरण तो व्यक्ति की श्रेष्ठता एवं निष्कृष्टता का मापक यंत्र है। इसी के द्वारा जीवन की उच्चता और उसके उच्चतम रहन-सहन के साधन अभिव्यक्त होते हैं। आचरण का पतन जीवन का पतन है और आचरण की उच्चता जीवन की उच्चता है। " " आज मूल्यों का भूमण्डलीकरण हो रहा है, जिससे विभिन्न संस्कृतियों के लक्षण विलुप्त होते जा रहे हैं। आज संस्कृति आध्यात्मिक चेतना खोती जा रही है | सम्पूर्ण विश्व अशान्त एवं तनावपूर्ण स्थिति में है । बौद्धिक विकास से प्राप्त विशाल ज्ञानराशि और वैज्ञानिक तकनीक से प्राप्त भौतिक सुख-सुविधा एवं आर्थिक समृद्धि, मनुष्य की आध्यात्मिक, मानसिक एवं सामाजिक विपन्नता को दूर करने में सक्षम नहीं प्रतीत होती है। तत्त्वमीमांसीय और नीतिशास्त्रीय आलोक में आधुनिक युग की इन समस्याओं का समाधान जैन दृष्टि प्रस्तुत करता है ।
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जैन दर्शन के सिद्धान्त जीवन की विविध समस्याओं एवं अध्यात्मवाद की चुनौतियों का समाधान करने में भी सफल है। आज हम जीवन में चतुर्दिक अनेकानेक संघर्ष, हिंसा, ईर्ष्या, राग-द्वेष आदि देखते हैं, जो मानवीयता के साथ ही मानव के अस्तित्व के लिए भी खतरनाक है। जैन दर्शन द्वारा उपदिष्ट अनैकान्तिक दृष्टि, समत्व और सहानुभूति का पालन करते हुए इससे बचा जा सकता है और मानव-मानव के बीच प्रेम, सहिष्णुता, शान्ति के साथ ही स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व के आदर्श को भी स्थापित किया जा सकता है। इन भावों को ही अभिव्यक्त करने के लिए जैन दर्शन में अहिंसा की सम्यक् व्याख्या की गयी है जिसका मन, वचन और काम से पालन करते हुए कोई भी मनुष्य जीवन के उच्च आदर्शों को प्राप्त कर सकता है। इस सन्दर्भ में श्री टी० एन० रामचन्द्र द्वारा प्रस्तुत भगवान् महावीर स्मृति ग्रन्थ की कुछ पंक्तियों को रखा जा सकता है - "भगवान् महावीर ने एक ऐसी साधु संस्था का निर्माण किया था, जिसकी भित्ति पूर्ण अहिंसा पर आधारित थी। उनका 'अहिंसा परमो धर्मः' का सिद्धान्त सारे संसार में २५०० वर्षों में अग्नि की तरह व्याप्त हो गया। अन्त में इस सिद्धान्त ने नव भारत के पिता महात्मा गाँधी को जन्म देकर अपनी ओर आकर्षित किया। यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं है कि अहिंसा के सिद्धान्त पर ही महात्मा गाँधी ने नवीन भारत का निर्माण किया है।"२
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