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वर्तमान सामाजिक सन्दर्भ में अध्यात्मवाद की चुनौतियाँ एवं जैन-दृष्टि से उनका समाधान : ६३
__ जैन दर्शन द्वारा स्थापित अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धान्त मनुष्य के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन की विषमता को दूर कर अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करता है। प्रो० के०सी० सोगानी ने जैन दर्शन और विशेष रूप से महावीर की दृष्टि पर प्रकाश डालते हुये आधुनिक युग में सामाजिक पुर्ननिर्माण में अहिंसा आदि की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया है -
"The social values which were regarded by Mahāvīra as basic are ahimsä, aprigraha and anekānta. These three are the consequence of Mahavira's devotedness to the cause of sociall reconstruction....."3
जैन दर्शन अहिंसा का अमूल्य संदेश भी प्रदान करता है। भगवान् महावीर तो अहिंसा के साक्षात अवतार थे। अहिंसा का यथार्थ स्वरूप राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, भीरूता, शोक, घृणा आदि विकृत भावों के त्याग में निहित है। हिंसा से बचने तथा अहिंसा के संरक्षण के लिये भगवान् महावीर ने अहिंसात्मक आचरण पर बल दिया है।
_प्रमुख जैन विचारक समन्तभद्र ने कहा है - "भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन अहिंसा का रचनात्मक सूत्र और सत्य की शोधशाला थी।"८ अहिंसा, सत्य आदि की चर्चा करते हुए ज्ञानोदय की पंक्ति को इस संदर्भ में उद्धृत किया जा सकता है - "अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, तप अपरिग्रह आदि महान आदर्शों के प्रतीक भगवान महावीर हैं। इन महाव्रतों की अखण्ड साधना से उन्होंने जीवन का बुद्धिगम्य मार्ग निर्धारित किया था और भौतिक शरीर के प्रलोभनों से ऊपर उठकर आध्यात्मिक भावों की शाश्वत विजय स्थापित की थी।"
आज जो दुनियाँ में रंगभेद, राष्ट्रभेद, जाति भेद आदि विषमताओं का उदय हो रहा है, पूँजीवाद की जो समस्या है, वह सहज में सुलझ सकती है, यदि संसार के समस्त सम्पतिशाली लोगों के हृदय में ये बात बैठ जाए कि -
बह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः। साथ ही उदय में यह बात उदित करनी होगी कि - अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवर्जवं च मानुषस्य कहा गया है - परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणाच्छादनोद्भावने च नीचैर्गोत्रस्य।६
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