________________
आचार्य शङ्कर की बौद्ध दृष्टि : ५७
माने गए हैं (श्रुत्यनुकूलस्तर्क एव हि तर्क:)। तथापि बौद्ध आलोचना के प्रसंग में शङ्कर के तर्कों की यह विशेषता है कि वे यहाँ श्रुति के प्रति आग्रह नहीं दिखाते हैं। बौद्ध सम्प्रदाय की तत्त्वमीमांसा को युक्तियों के माध्यम से असङ्गत, अपूर्ण, परमार्थ व व्यवहार दोनों दृष्टियों से असफल और अतार्किक सिद्ध करने का यह प्रयत्न वस्तुत: शङ्कर द्वारा तर्क के प्रति बौद्धों की आस्था का सम्मान ही है।
ब्रह्मसूत्रकार द्वारा सर्वास्तिवाद के खण्डन में जो युक्ति दी गई उसमें उनके दो प्रधान निष्कर्ष थे - (१) क्षणभङ्गवाद मानने से लोकव्यवहार की सुसङ्गत व्याख्या नहीं हो सकती और (२) अचेतन पदार्थ जगत् की उत्पत्ति में समर्थ नहीं हैं। अत: स्थिर चेतन तत्त्व की सत्ता मानना आवश्यक है। आचार्य शङ्कर ने इन सूत्रों पर अपने भाष्य में सूत्रकार के उक्त आशय को ही विस्तारपूर्वक पुष्ट किया है।
सर्वास्तिवाद के विरुद्ध आचार्य शङ्कर द्वारा दी गई यक्तियों की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें क्षणभङ्गवाद की आलोचना, व्यवहार के स्तर पर मान्य अचेतन संसार की क्षणिकता को लेकर नहीं की गई है। अपितु आपत्ति का प्रधान बिन्दु सर्वास्तिवाद में मान्य चित्त का क्षणिक स्वरूप है जिसकी गणना वह दर्शन-सम्प्रदाय घटपटादि की तरह व्यवहार के स्तर पर करता है (शारीरक भाष्य २/२/१८, २६)।
इसी प्रकार आचार्य ने सर्वास्तिवाद में मान्य असंस्कृत धर्म (प्रतिसंख्यानिरोध व अप्रतिसंख्या निरोध) का स्वरूप पदार्थ-विनाश माना है और विनाश को कार्य मानकर उसके कारण की अपेक्षा की है। शङ्कर की यह आपत्ति क्षण भङ्गवाद के स्वरूप से हटकर कार्यकारणभाव के धरातल से की गई है जो बौद्ध दृष्टि से सङ्गति नहीं रखती है (वही, २/२/२२)।
आचार्य शङ्कर ने विज्ञानवाद के खण्डन में जिन युक्तियों का प्रयोग किया है, उन्हें दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - (१) बाह्यार्थवाद के पक्ष से युक्तियाँ (२) शङ्कर के पक्ष से युक्तियाँ।
विज्ञानवाद के विरुद्ध, बाह्यार्थवाद के पक्ष से कुल चार युक्तियाँ प्रस्तुत की गई हैं। इनमें से दो युक्तियों का लक्ष्य व्यवहार में विज्ञेय की सत्ता, आवश्यकता व उपयोगिता को सिद्ध करना है (शारीरक भाष्य २/२/२८)। तृतीय युक्ति क्षणभङ्गवाद से सहोपलम्भ-नियम की असंगति को बताती है (वही)। चतुर्थ में, आचार्य ने विज्ञानवाद में बाह्यार्थ के लिए प्रस्तावित स्वप्न के दृष्टान्त पर आपत्ति की है (वही, २/२/२९)।
उपर्युक्त युक्तियों के अलावा अन्य युक्तियाँ शङ्कर ने अपने दर्शन के पक्ष से भी प्रस्तुत की हैं (वही, २/२/३१)। इनका प्रधान लक्ष्य बाह्यार्थ का खण्डन करना न होकर, विज्ञानवाद में प्रस्तावित विज्ञान के स्वरूप अथवा विज्ञान के आधार पर व्यवहार के वैचित्र्य की व्याख्या पर आपत्ति करना है। वासना व विज्ञान का सम्बन्ध,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org