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आचार्य शङ्कर की बौद्ध दृष्टि : ५५
प्रलाप करने वाला, लोक-कल्याण के विपरीत बौद्ध दर्शन के नाम से तीन परस्पर विरुद्ध मतों का प्रतिपादन कर समाज में भ्रान्ति व विद्वेष फैलाने वाला, देशना-विशेष के माध्यम से मोक्षमार्ग से पथभ्रष्ट करने वाला आदि। वस्तुतः शङ्कर के शब्दों में, बद्ध व उनकी यह विचारधारा (बौद्ध दर्शन) न केवल अनादरणीय है अपितु उपेक्षणीय भी है। यहाँ दार्शनिक स्तर पर वे बौद्ध दर्शन की समस्त विसङ्गतियों और व्यावहारिक कमियों के लिए सीधे बुद्ध को उत्तरदायी मानते हैं जबकि ऐतिहासिक स्तर पर बुद्ध के उपदेशों की सरलता और बौद्ध दर्शन की क्लिष्टता में पर्याप्त दूरी है। - उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट है कि बुद्ध के प्रति आचार्य शङ्कर की दृष्टि संक्षिप्त व मार्मिक टिप्पणियों के माध्यम से तीखे व गहरे आक्षेप करने की रही है। आक्षेप क्रम में, आचार्य शङ्कर ने न केवल कठोरतम शब्दों का उपयोग किया है बल्कि आक्रोश से परिपूर्ण उनकी शैली दार्शनिक की अपेक्षा पूर्वाग्रह से युक्त एक सामाजिक व धार्मिक व्यक्ति की हो गई है। इस कथन का प्रमाण यह भी है कि उन्होंने बौद्ध दर्शन के प्रसङ्ग में ही नहीं अपितु जैन दर्शन के खण्डन (शारीरक भाष्य - २/२/३३ व ३६) के प्रसङ्ग में भी दो बार सुगत-मत का स्मरण किया है। सम्प्रदाय -
वेदान्त के इतिहास में शङ्कर पहले ऐसे आचार्य हैं जिन्होंने बौद्ध दर्शन को पूर्ववर्ती आचार्यों की तुलना में अधिक महत्त्व दिया है। वे बौद्ध दर्शन के प्रधान सम्प्रदायों (सर्वास्तिवाद, विज्ञानवाद व शून्यवाद) का स्पष्ट नाम लेते हुए उनकी समालोचना करते हैं।११ आचार्य की दृष्टि में बौद्ध दर्शन के इन सम्प्रदायों की अनेकता और विविधता के दो प्रधान कारण हैं - (१) प्रतिपत्ति का भेद (२) शिष्यों का भेद।१२ प्रतिपत्ति व शिष्यों के भेद से यद्यपि ये सम्प्रदाय परस्पर सङ्गति नहीं रखते तथापि इनमें एक समानता है। आचार्य शङ्कर की दृष्टि में ये सभी - "सर्ववैनाशिक'१३ हैं। पारिभाषिक शब्द -
बौद्ध पारिभाषिक शब्दों के उपयोग की दृष्टि से भी ब्रह्मसूत्र और माण्डूक्यकारिका की अपेक्षा शारीरक भाष्य अधिक समृद्ध है। आचार्य शङ्कर ने प्रत्येक सम्प्रदाय का जो विवरण दिया है उसमें सम्प्रदाय के मत को पारिभाषिक शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करने का विशेष ध्यान रखा है।१४ इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पारिभाषिक शब्दों की अधिकता की दृष्टि से 'सर्वास्तिवाद' प्रधान है। भारतीय दर्शन के इतिहास में, बौद्ध दर्शन अपनी समृद्ध पारिभाषिक शब्दावली के लिए जो महत्त्व रखता है, शङ्कर उससे सुपरिचित थे और इसका प्रमाण उन्होंने भाष्य में अधिकाधिक पारिभाषिक शब्दों का उपयोग कर दिया है।
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