Book Title: Sramana 2003 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 53
________________ वनस्पति और जैन आहार शास्त्र : ४७ ५.१.७०. एवं आचारांग २.१.३२५ के साथ स्वर मिलती है। यह आचार मुनियों या शिक्षाव्रत पालकों के लिये है। ये कंदमूलों को अपक्व रूप में अग्राह्य मानते हैं, अग्निपक्व, निर्जीव या शस्त्र-परिणत के रूप में नहीं। यह अर्थ आचार्य महाप्रज्ञ, वसुनंदि आचार्य और मुनि मधुकर ने भी लगाया है। इस अर्थ को भूल कहना सही नहीं लगता। इन शास्त्रों के मन्तव्यों को सारणी-२ में दिया गया है। मूलाचार, ४७३ में भी 'अपरिणदं णेबगेहज्जो' का कथन है। भगवतीआराधना १२०६ में अन्दारित फल, मूल, पत्र, अंकुर एवं कंद के त्याग की ही चर्चा है। इस युग में भी पं० देवकीनंदन जी ने सागारधर्मामृत के श्लोक ७.७-८ में 'हरित' का अर्थ हरी वनस्पति या अप्रासुक बीजादि किया है। यह श्लोक भी यही कहता है कि हरितांकुर-बीज अप्रासुक अवस्था में न खाये। क्षुल्लक ज्ञानभूषण जी ने अपने सचित्त विवेचन नामक पुस्तक में अनेक विद्वानों (पं० बुलरकी दास आदि) के मन्तव्य दिये हैं। लाटीसंहिता तो यहां तक कहती है कि पांचवी प्रतिमाधारी स्वयं भी सचित्त को अचित्त कर सकता है। इतना अवश्य है कि उन्होंने कालपक्वन या अन्य विधियों की अपेक्षा अग्निपक्वन को अचित्तता का आधार माना है। आचार्य चंदना जी भी सचित्ताहार-जन्य हिंसा को तुलनात्मकत: क्षुद्र ही मानती हैं। इन विवरणों का सार सारणी २ में दिया गया है। भगवतीआराधना २१६-१७ में तो सल्लेखनागत साधु को ‘पत्र-शाक' के त्याग की बात कही है। इसका अर्थ अनुसंधेय है। वस्तुतः सचित्ताहार से संबंधित मध्ययुगीन विचारधारा के समान अन्य मान्यताओं के कारण ही नई पीढ़ी से धर्म उपेक्षित होने लगी है। उनकी आस्था को बलवती बनाने के लिये हमें वर्तमान में उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी का उपयोग कर स्वास्थ्य एवं धर्मसंरक्षण को प्रोत्साहित करना चाहिये। उपरोक्त चर्चा के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि - १. सचित्त/आम शब्द प्रत्येक और साधारण-दोनों कोटि के वनस्पतियों के लिये प्रयुक्त होता है। २. हमारे सामान्य आहार में प्रत्येक वनस्पति की तुलना में साधारण वनस्पति का अंश अल्प होता है, अत: उसे बहुघाती हिंसा का स्रोत नहीं माना जाना चाहिये। ३. भोगोपभोग परिमाण व्रत में कुछ ही सचित्त वस्तुओं का परिमित काल के लिये त्याग किया जाता है। उन्हें अचित्त कर खाया जा सकता है। ४. सचित्त त्याग प्रतिमा के स्तर पर सभी प्रकार की सचित्त वस्तुओं का आजन्म त्याग किया जाता है। हां, उन्हें स्वयं या अन्य के द्वारा अचित्तीकृत कर आहार के घटक के रूप में काम में लिया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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