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श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००३
से मानी है।१३ यह जाति भगवान महावीर के उपदेश से जैन धर्म में दीक्षित हई। जैसवाल दो उपजातियों में विभक्त हैं - एक तिरोतिया एवं दूसरा उपरोतिया। उपरोतिया जैसवाल काष्ठासंघी एवं तितोरिया मूलसंघी जैन धर्मावलम्बी हैं। उपरोतिया शाखा के ३६ गोत्र एवं तिरोतिया शाखा के ४६ गोत्र हैं। (उपरोतिया गोत्र छत्तीस, तिरोतिया गनि छयालीस) जैसवाल इक्ष्वाकु कुल के क्षत्रिय थे जो वैश्य कुल में परिवर्तित हो गए।
जैसवाल जाति में कई राजा, श्रेष्ठी, महामात्य और राजमान्य महापुरुष हो गए हैं। संवत् ११९० में जैसवाल वंशीय साहू नेमिचन्द ने कवि श्रीधर से वर्धमानचरित की रचना कराई। जैसवाल कवि माणिक्यराज ने अमरसेनचरित एवं नागकुमारचरित की रचना की थी। तोमरवंशीय राजा वीरमदेव के महामात्म जैसवाल कुशराज ने ग्वालियर में चन्द्रप्रभ का मंदिर बनवाया था। उन्होंने संवत् १४७५ में एक यंत्र की प्रतिष्ठा करवाई थी जो आजकल नरवर के जिनालय में विराजमान है। जैसवाल कुलोत्पन्न कविवर लक्ष्मणदेव ने संवत् १२७५ में जिणदत्तचरिउ और संवत् १७५२ में जैसवाल कुलोत्पन्न देल्ह कवि ने जिनदत्तचरित की रचना की थी।
। जैसवाल जैन समाज के आगरा, ग्वालियर, फिरोजाबाद, झालावाड़ आदि नगर प्रमुख केन्द्र माने जाते हैं। देश में जैसवाल जैन समाज की संख्या एक लाख से अधिक होने का अनुमान है।५ ६. पल्लीवाल
पल्लीवाल प्रारम्भ में दिगम्बर जैन जाति थी लेकिन विगत ३००-४०० वर्षों से इस जाति में कुछ परिवार श्वेताम्बर धर्मावलम्बी भी हो गए हैं। फिर भी वर्तमान में यह जाति मुख्यत: दिगम्बर धर्मानुयायी ही है। खण्डेला से खण्डेलवाल, अग्रोहा से अग्रवाल जाति के समान पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति राजस्थान के पाली नगर से मानी जाती है। कुछ विद्वानों के अनुसार पल्लीवाल जाति का उदय दक्षिण भारत के पल्ली नगर में हुआ। चूंकि यदि पाली नगर में पल्लीवाल जाति का उद्भव हुआ होता तो यह जाति पल्लीवाल के स्थान पर पालीवाल कहलाती क्योंकि आ के स्थान पर अ के प्रयोग का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता।
फिरोजाबाद के निकट चन्द्रवाड़ नामक नगर था जिसकी स्थापना संवत् १०५२ में चन्द्रपाल नामक राजा की स्मृति में हुई थी। चन्द्रवाड़ में १०वीं शताब्दी से लेकर १२वीं शताब्दी तक गहड़वालवंशीय राजाओं का राज्य रहा। इन राजाओं के अधिकांश मंत्री पल्लीवाल जैन थे। वर्तमान में पल्लीवाल आगरा, फिरोजाबाद, कनौज, अलीगढ़ क्षेत्र एवं ग्वालियर, उज्जैन आदि नगरों में मिलते हैं। आगरा क्षेत्र के पल्लीवालों के गोत्रों एवं कनौज, अलीगढ़, फिरोजाबाद के पल्लीवालों के गोत्रों में थोड़ा अन्तर है।
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