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२२ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००३ १६. नागदा२७
डूंगरपुर में ऊंडा मंदिर नागदों एवं हूंबड़ों दोनों का कहलाता है। नागदा समाज का मुख्य केन्द्र राजस्थान का बागड़ एवं मेवाड़ प्रदेश है। यह समाज भी दस्सा एवं बीसा में बंटी हुई है। उदयपुर में संभवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर नागदा समाज द्वारा निर्मित है। नागदा समाज के उदयपुर में ही १५०-२०० परिवार हैं। १७. चरनागरे२८
यह भी ८४ जातियों में से एक जाति है। मध्यप्रदेश में चरनागरे समाज प्रमुख रूप से निवास करता है। सन् १९१४ की जनगणना में इस समाज की जनसंख्या १९८७ थी। १८. कठनेरा२९
यह भी ८४ जातियों में एक छोटी जाति है। कठनेरा समाज की जनसंख्या सन् १९१४ में केवल ७११ थी जो अब कितनी हो गई होगी इसका अनुमान लगाना कठिन है। फिर भी यह एक जीवित जाति है। १९. श्रीमाल
यह जाति भी दिगम्बर समाज की जीवित जाति मानी जाती है। श्रीमाल यद्यपि दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में मिलते हैं लेकिन अधिकांश जाति दिगम्बर धर्म को मानने वाली है। राजस्थान में दिगम्बर धर्मानुयायी श्रीमालों की अच्छी संख्या है। २०. विनैक्या
यह जाति भी दिगम्बर जैन समाज का एक अंग तो रही है लेकिन यह बिखरी रही है। जैन धर्म एवं संस्कृति के संरक्षण में इस जाति का विशेष योगदान नहीं मिलता है। २१. समैय्या२२
किसी भी इतिहासकार ने इस जाति का उल्लेख नहीं किया क्योंकि यह परवार जाति की ही एक अंग थी लेकिन जब से तारण समाज की स्थापना हुई तथा मूर्ति पूजा के स्थान पर शास्त्र पूजा की जाने लगी तब से इस जाति का समैय्या नामकरण हो गया। यह जाति भी सागर जिले में मुख्य रूप में मिलती है। सन् १९१४ की जनसंख्या में समैय्या जाति की संख्या ११०७ थी लेकिन आज तारणपंथियों की अच्छी संख्या है। प्रारम्भ में तारण पंथ का विरोध अवश्य हुआ लेकिन वर्तमान में तारणपंथी भी दिगम्बर जैन समाज के ही अंग हैं।
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