Book Title: Sramana 2003 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 20
________________ १४ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००३ इनमें से कुछ प्रमुख जैन जातियों का परिचय निम्न प्रकार है :१. खण्डेलवाल उद्भव की कहानी खण्डेलवाल जैन समाज राजस्थान, मालवा, आसाम, बिहार, बंगाल, नागालैण्ड, मणिपुर, उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों एवं महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में हैं और आज भी बम्बई, कलकत्ता, जयपुर, इन्दौर, अजमेर जैसे नगर उनके केन्द्र माने जाते हैं जहां खण्डेलवाल जैन बड़ी संख्या में हैं। इस जाति में अनेक दीवान अथवा प्रमुख राज्य संचालक उच्च पदस्थ राज्याधिकारी हुए जिन्होंने सैकड़ों वर्षों तक राजपूताने के देशी राज्यों की अभूतपूर्व सेवा करते हुए युद्ध भूमि में विजय भी प्राप्त की। सारे देश में फैले हए खण्डेलवाल जैन संख्या की दृष्टि से पूरे दिगम्बर जैन समाज का पांचवा हिस्सा हैं। खण्डेलवाल जाति का नामकरण खण्डेला नगर के कारण हुआ। खण्डेला नगर राजस्थान के सीकर जिले में जिला मुख्यालय से ४५ कि०मी० दूर स्थित है। खण्डेला के इतिहास की अभी खोज नहीं हो सकी है लेकिन यहां पर जो जैन अवशेष मिलते हैं उससे पता चलता है कि शैव पाशुपतों का केन्द्र बनने के पहले यह नगर जैनों का प्रमुख केन्द्र था। इसका पुराना नाम खण्डिल्लकपत्तन अथवा खण्डेलगिरि था। भगवान् महावीर के १०वें गणधर मेतार्य ने खण्डिल्लकपत्तन में आकर कठोर तपस्या की थी ऐसा उल्लेख आचार्य जयसेन ने अपने ग्रन्थ धर्मरलाकर की प्रशस्ति में किया है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय की एक उपशाखा - खंडिल्लगच्छ का उद्गम स्थल भी यही स्थान है। खण्डेला का राजनैतिक इतिहास अधिकांश रूप में तो अन्धकारपूर्ण है। प्रारम्भ में यहाँ चौहानों का राज्य रहा। हम्मीरमहाकाव्य में भी खण्डेला का नामोल्लेख हुआ है। महाराणा कुम्भा ने भी खण्डेला पर अपनी विशाल सेना को लेकर आक्रमण किया था तथा नगर की खूब लूट-खसोट की थी। संवत् १५२४ में यहां उदयकरण का शासन था ऐसा वर्धमानचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है। २. अग्रवाल उत्तर भारत में अग्रवाल जैन जाति अत्यधिक प्रसिद्ध, समृद्ध एवं विशाल संख्या वाली मानी जाती है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और दिल्ली दिगम्बर जैनों के प्रमुख केन्द्र हैं। जैन धर्म, साहित्य एवं संस्कृति के विकास में अग्रवाल जैनों का प्रमुख योगदान रहा है। अग्रवाल जाति जैन एवं वैष्णव दोनों में बंटी हुई है तथा उन दोनों में सामाजिक सम्बन्ध भी प्रगाढ़ बने हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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