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[ २७ ] प्रसिद्ध रहा है। प्रारम्भिक मंगलाचरण में कवि ने मुनि कर्माणंद को नमस्कार किया है पता नहीं वे कौन थे ? अन्तिम पद्यों में 'राज हुकम जगतेसरे शब्दों द्वारा जगतसिंह राजा का उल्लेख किया है वे भी कहां के राजा थे ? निश्चित ज्ञात नहीं हुआ। इसकी पद्य संख्या प्रशस्ति के अनुसार ११३८ है। हमारे संग्रह में भी उसकी कई प्रतियां हैं।
डा० मोतीलाल मेनारिया ने माधोदास का कविताकाल १६६४ निश्चय किया है। राम रासो की पद्य संख्या १६०१ और उदयपुर की प्रति का लेखन समय १६६७ दिया है। उनके उद्धृत पद वास्तव में मूल ग्रन्थ के समाप्त होने के बाद लिखा गया है। उदयपुर प्रति में राज्याभिषेक का वर्णन अधिक है।
१८वीं शताब्दी २-रुघरासो सं० १७२५ के मिगसर मे मारवाड़ के वालरवे में इसकी रचना रूघपति (रुघनाथ ) ने की। इसकी प्रति कोटा भंडार में है।
३ राघव सीता रास-इस २२५ पद्योंवाली रचना की प्रति संवत् १७३५ की लिखी मिली है । इसकी भापा व शैली वीसलदेव रासो की तरह है। राम रासो डिंगल शैली का ग्रन्थ है, तो यह बोलचाल की भाषा में लोकगीत की शैली का। इसकी प्रति बीकानेर के बड़े ज्ञानभंडार में है।
.४ राम सीता रास-३४ पद्यों की इस लघु रास की दो पत्रों की - संवत् १७३३ लिखित प्रति हमारे संग्रह मे है।