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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
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४. प्रतिज्ञासूत्र - कात्यायनकृत ? ५. भाषिकसूत्र - कात्यायनकृत ? ६. सामतन्त्र - प्रव्रजि या गार्ग्य कृत' ? ७. प्रक्षरतन्त्र - आपिशलि कृत ।
इन में से प्रथम पांच ग्रन्थों में प्रातिशाख्यवत् प्रायः वैदिक स्वरादि कार्यों का उल्लेख है । संख्या ४-५ शुक्लयजुः प्रातिशाख्य के परिशिष्ट रूप हैं । अन्तिम दो ग्रन्थों में सामगान के नियमों का वर्णन है । प्रातिशाख्यों के प्रवक्ता और व्याख्याताओं का वर्णन २८ अध्याय में करेंगे ।
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प्रातिशाख्य आदि में उदधृत आचार्य
इन प्रातिशाख्य आदि वैदिक ग्रन्थों में निम्न प्राचार्यों का उल्लेख मिलता है
-
१.
श्रग्निवेश्य - तै० ० प्रा० ६| ४ || मै० प्रा० ३ ६ |४ ||
२. श्रग्निवेश्यायन' - तै० प्रा० १५|३२|| मै० प्रा० २२|३२||
३. श्रन्यतरेय ' - ऋ० प्रा० ३ | २२ ||
४.
श्रागस्त्य ' - ऋ० प्रा० वर्ग १|२ ||
५. श्रात्रेय - तै० प्रा० ५। ३१ || १७ | ८ || मै० प्रा० ५।६३ || २|५||६|८|| ६. इन्द्र - ऋक्तन्त्र १|४||
होता है । यह हस्तलेख अब ओरियण्टल मैनुस्कृप्ट्स लायब्ररी उज्जैन में २० सुरक्षित है । देखो - न्यु इण्डियन एण्टीक्वेरी, सितम्बर १९३८ में सदाशिव एल० कात्रे का लेख ।
१. सामतन्त्रं प्रवक्ष्यामि सुखार्थं सामवेदिनाम् । प्रौदवजिकृत सूक्ष्मं सामगानां सुखावहम् ।। हरदत्तविरचित सामवेदसर्वानुक्रमणी पृष्ठ ४ सामतन्त्रं तु मायेणेत्येवं वयमुपदिष्टाः प्रामाणिकैरिति सत्यव्रतः । अक्षरतन्त्र भूमिका पृ० २।
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२. प्रातिशाख्य की टीकाओं में कहीं-कहीं 'अग्निवेश्य' और अग्निवैश्यायन' नाम भी मिलता है । प्राग्निवेश्य का गृह्यसूत्र छप गया है ।
३. मैत्रायणीय प्रातिशाख्य में उद्धृत नामों के लिये पं० सातवलेकर द्वारा प्रकाशित मैत्रायणी संहिता का प्रस्ताव, पृष्ठ १६ देखें ।
४. चतुरध्यायी ३ । ७४ में 'श्रन्यतरेय' पाठ है । ५. शां० आरण्यक ७ । २ में भी निर्दिष्ट है ।