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सातवां अध्याय . संग्रहकार व्याडि (२९०० वि० पूर्व) प्राचार्य व्याडि अपर नाम दाक्षायण ने संग्रह' नाम का एक ग्रन्थ रचा था। वह पाणिनीय व्याकरण पर था, ऐसी पाणिनीय वैयाकरणों की धारणा है। महाराज समुद्रगुप्त ने भी व्याडि को 'दाक्षिपुत्रवचोव्याख्यापटुः' लिखा है। पतञ्जलि ने महाभाष्य के प्रारम्भ में 'संग्रह' का उल्लेख किया है, और महाभाष्य २।३।६६ में 'संग्रह' को दाक्षायण की कृति कहा है । संग्रह पद पाणिनीय गणपाठ ४।४।६०
में उपलब्ध होता है । संग्रह शब्द का एक अर्थ हैं-संक्षिप्त वचन । १. चरक में पठनीय ग्रन्थों के गुणों का वर्णन करते हुए ससंग्रहम विशेषण
दिया है । टीकाकार इसका अर्थ 'संक्षिप्त वचन' ही करते हैं । अतः गणपाठ में पठित 'संग्रह' शब्द से क्या अभिप्रेत है, यह विचारणीय है।
परिचय पर्याय-पुरुषोत्तमदेव ने त्रिकाण्ड-शेष में व्याडि के विन्ध्यस्य, १५ नन्दिनीसुत और मेधावी तीन पर्याय लिखे हैं।
विन्ध्यस्थ-आचार्य हेमचन्द्र इस का पाठान्तर विन्ध्यवासी', और केशव विन्ध्यनिवासी लिखता है। अर्थ तोनों का एक है एक
१. संग्रह का लक्षण-विस्तरेणोपदिष्टानामर्थानां सूत्रभाष्योः । निबन्धो यः समासेन संग्रहं तं विदुर्बुधाः ॥ भरतनाटय० ६६॥
२. संग्रहो व्याडिकृतो लक्षसंख्यो ग्रन्थः । महाभाष्यप्रदीपोद्योत, निर्णयसागर संस्क० पृष्ठ ५५ । तथा नीचे इसी पृष्ठ (२६८) की तीसरी टिप्पणी ।
३. संग्रहोऽप्यस्यैव शास्त्रस्यैकदेश: । महाभाष्यदीपिका भर्तृहरिकृत, पूना सं० पृष्ठ २३ । इह पुरा पाणिनोयेऽस्मिन् व्याकरणे व्याड्युपरचितं लक्षग्रन्थ
परिमाणं संग्रहाभिधानं निबन्धमासीत् । पुण्यराजकृत वाक्ययपदीयटीका, काशी २५ संस्क० पृष्ठ ३८३। ४. कृष्णचरित, नुनिकविवर्णन, श्लोक १६ ।
५. संग्रह एतत् प्राधान्येन परीत्रितम् ।..... संग्रहे तावत् कार्यप्रतिद्वन्द्विभावान्मन्यामहे ......। अ० १, पाद १, प्रा० १॥
६. शोभना खलु दाक्षायणस्य संग्रहस्य कृतिः।
७. अभिघानचिन्तामणि, मर्त्यकाण्ड ५१६, पृष्ठ ३४० । ३० ८. शब्दकल्पद्रुम, पृष्ठ ८३ ।