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महाभाष्यकार पतञ्जलि
पतञ्जलि से भिन्न व्यक्ति है, और महाभाष्यकार भी प्राग्देशान्तर्गत गोनद का नहीं है । वह कश्मीरज है, यह अनुपद लिखेंगे ।
महाभाष्य ३।२।११४ में अभिजानासि देवदत्त कश्मीरान् गमिज्यामः, तत्र सक्तून् पास्यामः' इत्यादि उदाहरणों में असकृत् कश्मीरगमन का उल्लेख मिलता है। इस उल्लेख से ऐसा प्रतीत होता है जैसे ५ कश्मीर जाने की बड़ी उत्कण्ठा हो रही हो । इन उदाहरणों के आधार पर कुछ एक विद्वानों का मत है कि पतञ्जलि की जन्मभूमि कश्मीर थी। महाभाष्य ३।२।१२३ से प्रतीत होता है कि पतञ्जलि अधिकतर पाटलिपुत्र में निवास करता था । महाभाष्य में विविध निर्देशों से व्यक्त होता है कि पतञ्जलि मथुरा, साकेत, कौशाम्बी और पाटलि- १० पुत्र प्रादि से भली प्रकार विज था। अत: पतञ्जलि की जन्मभूमि कौन सी थी, यह सन्दिग्ध है। पुनरपि कश्मीर के राजा अभिमन्यु और जयापीड द्वारा महाभाष्य का पुनः-पुनः उद्धार कराना' व्यक्त करता है कि पतञ्जलि का कश्मीर से कोई विशिष्ट सम्बन्ध अवश्य था ।
शाखा और चरण-महाभाष्य पतञ्जलि किस शाखा के अध्येता १५ थे, इस का कोई साक्षात् प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। कतिपय व्यक्तियों की मान्यता है कि वे अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा के अध्येता थे। इस में यह हेतु देते हैं कि महाभाष्य के प्रारम्भ में चारों वेदों के जो आदि मन्त्रों की प्रतीकें दी हैं। उनमें अथर्ववेद का आदि मन्त्र शन्नो देवी उद्धृत किया है। यह पैप्पलाद शाखा का प्रथम २० मन्त्र है।
हमने महाभाष्य में उद्धृत कतिपय वैदिक पाठों की सम्प्रति उपलब्ध शाखाओं के पाठों से तुलना की है। उससे हम इस परिणाम पहुंचे हैं कि पतञ्जलि काठक संहिता के पाठों को मुख्यता देते हैं । निदर्शनार्थ हम महाभाष्य में निर्दिष्ट कुछ पाठों को उद्धृत २५ करते हैं
(क)-महाभाष्य २।११४–पुनरुत्स्यूतं वासो देयम्, पुननिष्कृतो रयः। तुलना करो
१. द्रष्टव्य-पागे 'महाभाष्य का अनेक बार लुप्त होना' अनुशीर्षक
लेख।