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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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डा० बेल्वाल्कर ने किया है।'
पं० जानकी प्रसाद द्विवेद ने 'संस्कृत व्याकरणों पर जैनाचार्यों को टीकाएं, एक अध्ययन' शोर्षक निबन्ध में त्रिलोचनदास कृत पञ्जिका पर निम्न लेखकों की व्याख्यायों का वर्णन किया है।'
(छ) मणिकण्ठ भट्टाचार्य-इसने 'त्रिलोचन चन्द्रिका' नाम्नी व्याख्या की है। . पुरुषोत्तमदेव कृत महाभाष्य लघुवृत्ति पर शंकर पण्डित विरचित . व्याख्या की मणिकण्ठ ने एक टीका लिखी थी। इस का निर्देश हम पूर्व पृष्ठ ४०३ पर कर चुके हैं। हमारा विचार है कि इसी मणिकण्ठ ने 'त्रिलोचन चन्द्रिका' व्याख्या लिखी है ।
(ज) सीतानाथ सिद्धान्तवागीश-इसने पञ्जिका के कुछ भागों पर 'संजीवनी' नाम्नी व्याख्या लिखी थी।
(झ) पीताम्बर विद्याभूषण-इसने 'पत्रिका' नाम्नी व्याख्या की रचना की थी।
४-वर्धमान (१२ वीं शताब्दी वि०) डा० बेल्वाल्कर ने वर्धमान की टोका का नाम 'कातन्वविस्तर' लिखा है। इस की रचना गुर्जराधिपति महाराज कर्णदेव के शासन काल (सन् १०८८ ई० सं० ११४५ वि०) में हुई थी। गोल्डस्टुकर इस वर्धमान को 'गणरत्नमहोदधि' का कर्ता मानता है । गुरुपद हालदार ने भी इसे गणरत्नमहोदधिकार वर्षमान की रचना माना है।' वोपदेव ने 'कविकामधेनु' कातन्त्रविस्तर को उद्धृत किया है।
.. कातन्त्र-विस्तर के व्याख्याकार १-पृथ्वीघर-पृथ्वीधर नाम के विद्वान् ने वर्धमान कृत सातन्त्रविस्तर पर एक व्याख्या लिखी थी।
१. पिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पैरा नं० ६६ । २. संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश की परम्परा, पृष्ठ ११५
३. वर्धमान १९४० स्रष्टाब्वे गणरत्नमहोदधि प्रणयन करेन । "ताहार कातन्त्रविस्तर वृत्ति एकखानि प्रामाणिक ग्रन्य, एखन ओ किन्तु उहा मुद्रित • हुई नाई। व्याकरण दर्शनेर इतिहास, पृष्ठ ४५७ ।