Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 751
________________ ७१४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'इदं परमहंसश्रीमदनुभूतिलिखने क्षीरे नीरमिव प्रक्षिप्तम्।' अर्थात् मैंने अनुभूतिस्वरूप के क्षीररूपी ग्रन्थ में नीर के समान प्रक्षेप किया है । अर्थात् जैसे क्षीर नीर मिलकर एकाकार हो जाते हैं, वैसे ही यह ग्रन्थ भी बन गया है । ग्रन्थकार ने वृत्तिलेखन का काल इस प्रकार प्रकट किया हैनयनमुनिक्षितिपांके (१६७२) वर्षे नगरे च होडाख्ये। वृत्तिरियं संसिद्धा क्षिति भवति श्रीजहांगीरे ॥ अर्थात् -जहांगीर के राज्यकाल में सं० १६७२ में 'होडा' नगर . में यह वृत्ति पूरित हुई। २-रामाश्रम (सं० १७४१ वि० से पूर्व) रामाश्रम ने भी सारस्वत का रूपान्तर करके उस पर सिद्धान्तचन्द्रिका नाम्नी व्याख्या लिखी है। रामचन्द्र का इतिवृत्त अज्ञात है। कुछ विद्वानों के मत में भट्टोजि दीक्षित के पुत्र भानुजि दीक्षित का ही रामाश्रम वा रामचन्द्राश्रम १५ नाम है । इस पर लोकेशकर ने सं० १७४१ में टीका लिखी है । अतः यह उससे पूर्वभावी है, इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है। इसने अपनी टीका का एक संक्षेप 'लघुसिद्धान्तचन्द्रिका' भी लिखी है। सिद्धान्त-चन्द्रिका के टीकाकार (१) लोकेशकर-लोकेशकर ने सिद्धान्तचन्द्रिका पर तत्त्व२० दीपिका-नाम्नी टीका लिखी है। यह रामकर का पौत्र और क्षेमकर का पुत्र था। ग्रन्थलेखनकाल अन्त में इस प्रकार दिया है चन्द्रवेदहयभूमिसंयुते वत्सरे नभसि मासे शोभने । शुक्लपक्षदशमोतियावियं दीपिका बुधप्रदीपिका कृता॥ अर्थात् सं० १७४१ श्रावण शुक्लपक्ष दशमी को दीपिका पूर्ण हुई। २५ (२) सदानन्द-सदानन्द ने सिद्धान्तचन्द्रिका पर सुबोधिनी टीका लिखी है। इसने टीका का रचनाकाल निधिनन्दार्वभूवर्षे (१७६६) लिखा है। (३) व्युपत्तिसारकार-हमारे पास सिद्धान्तचन्द्रिका के उणादि प्रकरण पर लिखे गए 'व्युत्पत्तिसार' नामक ग्रन्थ के हस्तलेख

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