Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 754
________________ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ७१७ दौलताबाद) के महादेव और राम नामक यादव राजाओं का सचिव था । वोपदेव ने हेमाद्रि सचिव के कहने से उस के लिये भागवत पुराण की 'हरिलीलामृत' नाम्नी सूची का निबन्धन किया था । हेमाद्रि की मृत्यु सं० १३३३ (सन् १२७६ ) में हुई थी ।' अतः वोपदेव का काल सं० १२८७ - १३५० तक माना जा सकता है। मल्लिनाथ ने ५ कुमार संभव की टीका में वोपदेव को उद्धृत किया है। मल्लिनाथ का काल सामान्य रूप से वि० सं० १४०० माना जाता है । १० हम ने पूर्व (पृष्ठ ५६८) लिखा है कि अमरचन्द्र सूरि विरचित वृहद् वृत्त्यवचूर्णि (लेखन काल १२६४ ) ने पृष्ठ १५४ पर मल्लिनाथ विरचित 'न्यासोद्योत को तन्त्रोद्योत के नाम से उद्धृत किया है । यदि हमारा पूर्व लेख ठीक हो तो वोपदेव का काल कुछ पूर्व मानना होगा । अथवा अमरचन्द्रसूरि विरचित बृहद् वृत्त्यवचूर्णि में उद्धृत तन्त्रोद्योत ग्रन्थान्तर होगा । अन्य ग्रन्थ - वोपदेव ने 'कविकल्पद्रुम' के नाम से धातुपाठ का संग्रह किया है और उस पर 'कामधेनु' नाम्नी संक्षिप्त व्याख्या लिखी १५ हे । इस के अतिरिक्त 'मुक्ताफल', 'हरिलीलामृत' शतश्लोकी' ( वैद्यक ग्रन्थ) और हेमाद्रि नाम का धर्मशास्त्र पर एक निबन्ध लिखा 1 शेष अङ्ग और उनके पूरक व्याकरण शास्त्र पञ्चाङ्ग माना जाता है। सूत्र पाठ के प्रति - २० रिक्त धातुपाठ गणपाठ उणादिपाठ और लिङ्गानुशासन नाम के ग्रन्थ उस के श्रृङ्ग माने जाते हैं । वोपदेव ने केवल सूत्रपाठ और धातुपाठ का ही प्रवचन किया था । शेष अङ्गों की पूर्ति निम्न विद्वानों ने की - गणपाठ - यद्यपि वोपदेव ने सूत्रों में 'आदि' पद के द्वारा गणों का निर्देश किया है, परन्तु उस के द्वारा संगृहीत गणपाठ का उल्लेख २५ नहीं मिलता । 'संस्कृत साहित्ये वांगलार दान' ग्रन्थ में वन्द्योपाध्याय सुरेश चन्द्र ने गङ्गाधर कृत मुग्धबोधानुसारी गणपाठ का निर्देश किया है।" उणादिपाठ- 'वोपदेव का संस्कृत व्याकरण को योगदान' नामक . १. वोपदेव का सं० व्य० को योगदान, टाइपकापी, पृष्ठ ३७ १ २. वोपदेव का सं० व्या० को योगदान, टाइप कापी, पृष्ठ ४६ ३०

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