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प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ७२३ . भी लिखी है। उसे महाभाष्य के समान मानते हैं। मञ्जरीमकरन्द छपा है । मेरे पास एक कापी है ।
इस लेख के अनुसार भट्ट अकलङ्क ने कन्नड़ भाषा का व्याकरण लिखा था। अतः उसका यहां निर्देश नहीं होना चाहिये । पुनरपि हमने जैसी भूल की वैसी भूल अन्य लेखक न करें इस दृष्टि से यहां ५ भट्ट अकलङ्क के व्याकरण और उसकी व्याख्या मञ्जरीमकरन्द का निर्देश कर दिया है। इस से हमारी भूले सुधार करने हारे मा० देवे गौड के उपकार को प्रकट करने तथा धन्यवाद करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है।
अन्य व्याकरणकार पाणिनि से अर्वाचीन उपर्युक्त वैयाकरणों के अतिरिक्त कुछ और भी वैयाकरण हुए हैं, जिन्होंने अपने-अपने व्याकरणों की रचना की है। उनमें से निम्न वैयाकरणों के व्याकरण सम्प्रति उपलब्ध हैं१-शुभचन्द्र चिन्तामणि' व्याकरण ६-............"चैतन्यामृत व्याकरण २-भरतसेन · द्रुतबोध , १०-बालराम पञ्चानन प्रबोधप्रकाश ,, १५ ३-रामकिंकर आशुबोध , ११-विज्जलभूपति प्रबोधचन्द्रिका , ४-रामेश्वर शुद्धाशुबोध , १२-क्लियसुन्दर भोज ५-शिवप्रसाद शीघ्रबोध , १३-विनायक भावसिंहप्रक्रिया ,, ६-काशीश्वर ज्ञानामृत , १४-चिद्र पाश्रम दीप । ७-रूपगोस्वामी हरिनामामृत ,, १५-नारायण सुरनन्द कारिकावली, २० ८-जीवगोस्वामी हरिनामामृत,, १६-नरहरि बालबोध ,
ये ग्रन्थ नाममात्र के व्याकरण हैं, और इनका प्रचार भी नहीं है। इसलिये हमने इनका वर्णन इस ग्रन्थ में नहीं किया। .
. हमने 'संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास' के इस प्रथम भाग में पाणिनि से प्राचीन २६ और अर्वाचीन १६ व्याकरणकार प्राचार्यो २५ तथा उनके शब्दानुशासनों पर विविध व्याख्याएं रचनेवाले लगभम २८० वैयाकरणों का संक्षिप्त वर्णन किया है। इसके दूसरे भाग में व्याकरणशास्त्र के खिलपाठ (अर्थात् धातुपाठ, गणपाठ, उणादि,
१. इसका उल्लेख शुभचन्द्र ने पाण्डवपुराण के अन्त में किया है। द्र०जैनग्रन्थ प्रशस्तिसंग्रह, पृष्ठ ५०, श्लोक १७६ । .