Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 692
________________ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६५५ 'चन्द्रस्तु सौहृदमिति हृदयस्याणि हृदादेशो न हृदुत्तरपदम्, हृद्भगेत्युत्तरपदादैजभावमाह।" चान्द्रवृत्ति ६ । १ । २९ में यह पाठ इस प्रकार है'सौहृदमिति हृदयस्याणि हृदादेशो, हृदुत्तरपदम् ।' २-वही पुनः लिखता है'मन्तूज़ - मन्तूयति मन्तूयते इति चन्द्रः । यह पाठ चान्द्रव्याकरण १ । १ । ३६ की टीका में उपलब्ध होता ३-सायणाचार्य ने भी उपर्युक्त पाठ को चन्द्र के नाम से उद्धृत किया है। इसी प्रकार अन्यत्र भी कई स्थानों में वर्धमान और १० सायण ने इस चान्द्रवृत्ति को चान्द्र के नाम से उद्धृत किया है ।। अथवा यह सम्भव हो सकता है कि धर्मदास ने चान्द्रवृत्ति का ही . उसी के शब्दों में संक्षेप किया हो। इस पक्ष में भी प्राचार्य चन्द्र की स्वोपज्ञवृत्ति का प्रामाण्य तद्वत् ही रहता है। ___ कश्यप भिक्षु (सं० १२५७) बौद्ध भिक्षु कश्यप ने सं० १२५७ के लगभग चान्द्र सूत्रों पर वृत्ति लिखी। इसका नाम 'बालबोधिनी' है। यह वत्ति लंका में बहत प्रसिद्ध है। डा. बेल्वाल्कर ने लिखा है कि कश्यप ने चान्द्रव्याकरण के अनुरूप बालावबोध' नामक व्याकरण लिखा, वह वरदराज की लघुकौमुदी से मिलता जुलता है। हम इस के विषय में कुछ नहीं २० जानते। चान्द्रव्याकरण के विषय जो महानुभाव विस्तार से जानना चाहें वे डा. हर्षनाथ मिश्र का 'चान्द्रव्याकरणवत्तेः समालोचनात्मकमध्ययनम्' नामक शोध प्रबन्ध देखें। २५ - १. गणरत्नमहोदधि पृष्ठ २२७ । २. गणरत्नमहोदधि पृष्ठ २४२ । ३. धातुवृत्ति पृष्ठ/४०४। ४. कीथ विरचित 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' पृष्ठ ४३१ । ५, सिस्टम्स आफ संस्कृत ग्रामर पैराग्राफ नं० ४६ ।

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