Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

View full book text
Previous | Next

Page 742
________________ आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ७०५ इसीलिये अनेक हस्तलेखों के अन्त में निम्न पाठ उपलब्ध होता है' इति वादीन्द्रचक्रचूडामणिमहापण्डितश्री क्रमदीश्वरकृतौ संक्षिप्तसारे महाराजाधिराजजुमरनन्दिशोषितायां वृत्तौ रसवत्यां । ८६ देश – पश्चिम बङ्ग प्रदेश में भागीरथी का दक्षिण प्रदेश क्रमदीश्वर की जन्म भूमि थी । यह प्रदेश 'वाघा' नाम से प्रसिद्ध है । इसी ५ प्रदेश में क्रमदीश्वर व्याकरण प्रचलित रहा । ' परिष्कर्त्ता - जुमरनन्दी उपर्युक्त उद्धरण से राजा था । कई लोग जुमर चिन्त्य है | व्यक्त है कि जुमरनन्दी किसी प्रदेश का शब्द का संबन्ध जुलाहा से लगाते हैं, यह परिशिष्टकार - गोयीचन्द्र गोयीचन्द्र प्रत्यासनिक ने सूत्रपाठ, उणादि और परिभाषापाठ पर टीकाएं लिखीं, और उसने जौमर व्याकरण के परिशिष्टों की रचना की । इण्डिया अफिस लन्दन के पुस्तकालय में ८३६ संख्या का एक हस्तलेख है, उस पर 'गोयीचन्द कृत जौमर व्याकरण परिशिष्ट' १५ लिखा है । गोयचन्द्र- टीका के व्याख्याकार १ - न्यायपञ्चानन - विद्यविनोद के पुत्र न्यायपञ्चानन ने सं० १७६६ में गोयीचन्द्र की टीका पर एक व्याख्या लिखी है । २ - तारकपञ्चानन - तारक पञ्चानन ने दुर्घटोद्घाट नाम्नी २० व्याख्या लिखी है । उसके अन्त में लिखा है 'गोयीऋद्रमतं सम्यगबुद्ध्वा दूषितं तु यत् । - अन्यथा विवृतं यद्वा तन्मया प्रकटीकृतम् ॥' ३ - चन्द्रशेखर विद्यालंकार ५ - हरिराम ४ - वंशीवादन इन का काल अज्ञात है । ६ - गोपाल चक्रवर्ती - इसका उल्लेख कोलब्रुक ने किया है १० १. सत्यनारायणवर्मा का क्रमदीवर व्याकरणविषयको विमर्शः लेख, परमार्थ सुधा, वर्ष ५, अंक ३, सं० २०३८, पृष्ठ १० 31 1 २५ (

Loading...

Page Navigation
1 ... 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770