Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 748
________________ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ७११ भी संभव नहीं है । अतः हमारे विचार में हस्तलेख में जो संवत् दिया है, उसमें लेखक प्रसाद से अशुद्धि हो गई है। यहां सम्भवतः सं० १५६५ देना चाहिए था। दीपिकायां सम्पूर्णाः पाठं से भी प्रतीत होता है कि लेखक विशेष पठित नहीं था। चन्द्रकीति सूरि नागपुरीय बृहद् गच्छ के संस्थापक देवसूरि से १५ वीं पीढी में थे। देवसूरि का काल संवत् १.१७४ है। अतः चन्द्रकीर्ति का काल १६ वीं शती का अन्त और १७ वीं शती का प्रारम्भ मानना अधिक युक्त प्रतीत होता है। चन्द्रकीर्ति के शिष्य हर्षकीत्ति सूरि ने सारस्वत व्याकरण से संबद्ध धातुपाठ की रचना की और उस पर 'धातु तरङ्गिणी; नाम्नी वृत्ति १० लिखी थी। इस का उल्लेख 'धातू पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३)' नामक बाईसवें अध्याय में करेंगे। . ........ ____- रघुनाथ (सं० १६०० वि० के लगभग) रघुनाथ ने पातञ्जल महाभाष्य के अनुकरण पर सारस्वत सूत्रों पर लघु भाष्य रचा। इसके पिता का नाम विनायक था। यह प्रसिद्ध १५ वैयाकरण भट्टोजि दीक्षित का शिष्य था । भट्टोजि दीक्षित का काल अधिक से अधिक वि० सं० १५७०-१६५० माना जा सकता है। (द्र०-पूर्व पृष्ठ. ५३१-५३३) । अतः रघुनाथ ने सं० १६०० के लगभग यह भाष्य लिखा होगा। डा० बेल्वाल्कर ने इसका काल ईसा की १७ वीं शती का मध्य माना है, वह चिन्त्य है। ....... २० १०- मेघरत्न (सं० १६१४ वि० से पूर्व) __मेघरत्न ने ढुंढिका अथवा दीपिका नाम्नी व्याख्या लिखी है। यह जैन मत के बृहत् खरतर गच्छं से संबद्ध श्रीविनयसुन्दर का शिष्य था। 'इस व्याख्या का हस्तलेख सं० १६१४ का मिलता है। .. ११-मण्डन (सं० १६३२ वि० से पूर्व) २५ मण्डन ने सारस्वत की एक टीका लिखी है । इसके पिता का नाम 'वाहद' का 'वाहद का एक भाई पदम था। वह मालवा के अलपशाही वा अलाम का मन्त्री था, और वाहद एक संघेश्वर वा संघपति था। यह संकेत ग्रन्थकार ने स्वयं टीका में किया है। इसका सब से पुराना हस्तलेख सं० १६३२ का उपलब्ध है।

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