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आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
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इसीलिये अनेक हस्तलेखों के अन्त में निम्न पाठ उपलब्ध होता है' इति वादीन्द्रचक्रचूडामणिमहापण्डितश्री क्रमदीश्वरकृतौ संक्षिप्तसारे महाराजाधिराजजुमरनन्दिशोषितायां वृत्तौ रसवत्यां
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देश – पश्चिम बङ्ग प्रदेश में भागीरथी का दक्षिण प्रदेश क्रमदीश्वर की जन्म भूमि थी । यह प्रदेश 'वाघा' नाम से प्रसिद्ध है । इसी ५ प्रदेश में क्रमदीश्वर व्याकरण प्रचलित रहा । '
परिष्कर्त्ता - जुमरनन्दी
उपर्युक्त उद्धरण से राजा था । कई लोग जुमर चिन्त्य है |
व्यक्त है कि जुमरनन्दी किसी प्रदेश का शब्द का संबन्ध जुलाहा से लगाते हैं, यह
परिशिष्टकार - गोयीचन्द्र
गोयीचन्द्र प्रत्यासनिक ने सूत्रपाठ, उणादि और परिभाषापाठ पर टीकाएं लिखीं, और उसने जौमर व्याकरण के परिशिष्टों की रचना की । इण्डिया अफिस लन्दन के पुस्तकालय में ८३६ संख्या का एक हस्तलेख है, उस पर 'गोयीचन्द कृत जौमर व्याकरण परिशिष्ट' १५ लिखा है ।
गोयचन्द्र- टीका के व्याख्याकार
१ - न्यायपञ्चानन - विद्यविनोद के पुत्र न्यायपञ्चानन ने सं० १७६६ में गोयीचन्द्र की टीका पर एक व्याख्या लिखी है ।
२ - तारकपञ्चानन - तारक पञ्चानन ने दुर्घटोद्घाट नाम्नी २० व्याख्या लिखी है । उसके अन्त में लिखा है
'गोयीऋद्रमतं सम्यगबुद्ध्वा दूषितं तु यत् । - अन्यथा विवृतं यद्वा तन्मया प्रकटीकृतम् ॥' ३ - चन्द्रशेखर विद्यालंकार ५ - हरिराम
४ - वंशीवादन
इन का काल अज्ञात है ।
६ - गोपाल चक्रवर्ती - इसका उल्लेख कोलब्रुक ने किया है
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१. सत्यनारायणवर्मा का क्रमदीवर व्याकरणविषयको विमर्शः लेख, परमार्थ सुधा, वर्ष ५, अंक ३, सं० २०३८, पृष्ठ १०
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