Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

View full book text
Previous | Next

Page 744
________________ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ७०७ ___सारस्वत सूत्रों का रचयिता .. क्षेमेन्द्र अपनी सारस्वतप्रक्रिया के अन्त में लिखता है'इति श्रीनरेन्द्राचार्यकृते सारस्वते क्षेमेन्द्रटिप्पनं समाप्तम् ।' . इससे प्रतीत होता है कि सारस्वत सूत्रों का मूल रचयिता . 'नरेन्द्राचार्य' नामक वैयाकरण है। अमरभारती नामक एक अन्य ५ टीकाकार भी लिखता है। 'यन्नरेन्द्रनगरिप्रभाषितं यच्च वैमलसरस्वतीरितम् । ...... तन्मयात्र लिखितं तथाधिकं किञ्चिदेव कलितं स्वया धिया ॥ विठ्ठल ने प्रक्रियाकौमुदी की टीका में नरेन्द्राचार्य को असकृत् । उद्धृत किया है। एक नरेन्द्रसेन वैयाकरण 'प्रमाणप्रमेयकलिका' का कर्ता है । इस के गुरु का नाम कनकसेन, और उसके गुरु का नाम अजितसेन था। नरेन्द्रसेन का चान्द्र, कातन्त्र, जैनेन्द्र और पाणिनीय तन्त्र पर पूरा अधिकार था । इसका काल शकाब्द ६७५ अर्थात् वि० सं० १११० है। यद्यपि नरेन्द्राचार्य और नरेन्द्रसेन की एकता का कोई उपोद्वलक १५ प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ, तथापि हमास विचार है कि ये दोनों एक हैं। उपर्युक्त प्रमाणों से इतना स्पष्ट है कि नरेन्द्र या नरेन्द्राचार्य ने कोई सारस्वत व्याकरण अवश्य रचा था, जो अभी तक मूल रूप में प्राप्त नहीं हुअा । इस विषय में भी ध्यान रखने योग्य बात है कि २० वर्तमान सारस्वत-व्याकरण की प्रथम वृत्ति तद्धितभाग पर्यन्त है। इस में किंवदन्ती में प्रसिद्ध ७०० सूत्रसंख्या पूर्ण हो जाती है । अत: इन ७०० सूत्रों का रचयिता नरेन्द्राचार्य हो सकता है। .. इस संभावना में यह उपोद्बलक एक प्रमाण और भी है कि सारस्वत व्याकरण की प्रथम वृत्ति के अन्त में अनुभूतिस्वरूप का नाम ४ नहीं मिलता। द्वितीय और तृतीय वत्ति के अन्त में 'इति...... । अनुभूतिस्वरूपाचार्यविरचितायां......"समाप्तः' पाठ मिलता है। अत यह सम्भावना अधिक युक्त प्रतीत होती है कि सारस्वत व्याकरण का प्रथम ७०० सूत्रात्मक भाग नरेन्द्राचार्य.विरचित हो, और शेष भाग अनुभूतिस्वरूपाचार्य विरचित । संस्कृत वाङमय में ३०

Loading...

Page Navigation
1 ... 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770