Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 736
________________ आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६६६ श्लोक | आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण पर ६० सहस्र श्लोक परिमाण का 'शब्दमहार्णव न्यास' अपर नाम 'बृहन्नयास' नामक विवरण लिखा था । यह चिर काल से अप्राप्य था । श्रीविजयलावण्यसूरिजी के महान् प्रयत्न से यह प्रारम्भ से पञ्चन ग्रध्याय तक ५ भागों में प्रकाशित हो चुका है । हैमशब्दानुशासन में स्मृति ग्रन्थकार - इस व्याकरण तथा इसकी वृत्तियों में निम्नलिखित प्राचीन प्राचार्यों का उल्लेख मिलता है - पिलि, यास्क, शाकटायन, गार्ग्य, वेदमित्र, शाकल्य, इन्द्र, चन्द्र, शेषभट्टारक, पतञ्जलि, वार्तिककार, पाणिनि, देवनन्दी, जयादित्य, वामन, विश्रान्तविद्याधरकार, विश्रान्तन्यासकार ( मल्लवादी १० सूरि), जैन शाकटायन, दुर्गसिंह, श्रुतपाल, भर्तृहरि, क्षीरस्वामी, भोज, नारायणकण्ठी, सारसंग्रहकार, द्रमिल, शिक्षाकार, उत्पल उपाध्याय ( कैयट ),' क्षीरस्वामी, जयन्तीकार, न्यासकार और पारायणकार । अन्य व्याख्याकार १५ हैमव्याकरण पर अनेक विद्वानों ने टीका टिप्पणी आदि लिखे । उनके ग्रन्थ प्रायः दुष्प्राप्य श्रोर अज्ञात हैं । श्री अम्बालाल प्रेमचन्द शाह ने 'मध्यकालीन भारतना महावैयाकरण' शीर्षक लेख में हैम व्याकरण के निम्न व्याख्याकारों का निर्देश किया है' - १ - रामचन्द्र सूरि ( हेमचन्द्राचार्य शिष्य) २. धर्मघोष ३. देवेन्द्र (हेमचन्द्र - शिष्य) उदयसागर का शिष्य) ४. कनकप्रभ (देवेन्द्र - शिष्य ) ५. काकल (कक्कल कायस्थ ) लघुवृत्ति इसका निर्देश हेमहंसगणि के न्यायसंग्रह के न्यास में मिलता है । " ६. सौभाग्य- सागर (सं० - १५९१) हैम बृहद्वृत्ति ढुंढिका लघुन्यास ( ५३०० श्लोक) (६००० श्लोक ) 11 कतिचिद् हैम दुर्गपद व्याख्या न्यासोद्धार १. श्री जैन सत्यप्रकाश वर्ष ७, दीपोत्सवी अंक, पृष्ठ ८६ । २. वही, पृष्ठ ८६ । ३. काकलकायस्थकृतलक्षणलघुवृत्तिस्थः पृष्ठ १८७ । २५ ३०

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