Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 713
________________ ६७६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास का मत है कि यह व्याकरण चान्द्र जैनेन्द्र और काशिका से भी अर्वाचीन है। शाकटायन व्याकरण का कर्ता-इस अभिनव शाकटायन व्याकरण का कर्ता का वास्तविक नाम 'पाल्यकोत्ति' है। वादिराजसूरि ५ ने 'पार्श्वनाथचरित' में लिखा है - कुतस्त्या तस्य सा शक्तिः पाल्यकीर्तेर्महौजसः । । श्रीपदश्रवणं यस्य शाब्दिकान् कुरुते जनान् ॥ अर्थात्-उस महातेजस्वी पाल्यकीति की शक्ति का क्या कहना जो उस के 'श्री' पद का श्रवण करते ही लोगों को वैयाकरण बना १० देती है। इस श्लोक में श्रीपदश्रवणं यस्य' का संकेत शाकटायन व्याकरण की स्वोपज्ञ अमोघा वत्ति की ओर है । अमोघावृत्ति के मङ्गलाचरण का प्रारम्भ 'श्रीवीरममतं ज्योतिः' से होता है। पार्श्वनाथचरित की पञ्जिका टीका के रचयिता शुभचन्द्र ने पूर्वोक्त श्लोक की व्याख्या में १५ लिखा है तस्य पाल्यकोर्तेमहौजसः श्रीपदश्रवणं श्रिया उपलक्षितानि पनि शाकटायनसूत्राणि, तेषां श्रवणमाकर्णनम् । इससे स्पष्ट है कि शाकटायन व्याकरण के कर्ता का नाम पाल्यकीर्ति था। शाकटायन-प्रक्रिया के मङ्गलाचरण में भी पाल्यकीर्ति को २० नमस्कार किया है। परिचय आचार्य पाल्यकीति को कुछ विद्वान् श्वेताम्बर सम्प्रदाय का मानते हैं, और कुछ दिगम्बर सम्प्रदाय का। परन्तु पाल्यकीति याप नीय सम्प्रदाय के थे।' यह दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों का २५ अन्तरालवर्ती सम्प्रदाय था। यापनीय सम्प्रदाय के नष्ट हो जाने से दोनों सम्प्रदाय वाले इन्हें अपना प्राचार्य मानते हैं । पाल्यकीति ने अमोघावृत्ति में छेदक सूत्र नियुक्ति और कालिक सूत्र आदि श्वेताम्बर ग्रन्थों का आदर पूर्वक उल्लेख किया है। १. यापनीययतिग्रामाग्रणीः । मलयगिरिकृत नान्दीसूत्र की टीका में, पृ० ३० १५ । २. द्र०–६० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य की न्यायकुमुदचन्द्र भाग २ की प्रस्तावना।

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