Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

View full book text
Previous | Next

Page 727
________________ ६६० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास का उत्तरार्ध माना जाता है।' इसलिये दण्डनाथ उससे प्राचीन है, इतना ही निश्चय से कहा जा सकता है । हृदयहारिणी व्याख्या सहित सरस्वतीकण्ठाभरण के सम्पादक साम्बशास्त्री ने 'दण्डनाथ' शब्द से कल्पना की है कि नारायणभट्ट भोजराज का सेनापति वा न्यायाधीश था। हृदयहारिणी टीका के चतुर्थ भाग के भूमिका-लेखक के. एस. महादेव शास्त्री का मत है कि दण्डनाथ मुग्धबोधकार वोपदेव से उत्तरवर्ती है । इस बात को सिद्ध करने के लिये उन्होंने कई पाठों की तुलना की है । उनके मत में दण्डनाथ का काल १३५०- १४५० १० ई. सन के मध्य है। हमें महादेव शास्त्री के निर्णय में सन्देह है। क्योंकि मुग्धबोध के साथ तुलना करते हुए जिन मतों का निर्देश किया है, वे मत मुग्धबोध से प्राचीन ग्रन्थों में भी मिलते हैं। यथा निष्ठा में स्फायी को विकल्प से स्फी भाव का विधान क्षीरस्वामी कृत क्षीरतरङ्गिणी में भी उपलब्ध १५ होता है। ___ “निष्ठायां स्फायः स्फी (६ । १ । १२) स्फीतः। ईदित्त्वं स्फायेरादेशानित्यत्वे लिङ्गम्-स्फातः । १ । ३२६ ।' ३- कृष्ण लीलाशुक मुनि (सं० १२२५-१३०० वि० के मध्य) कृष्ण लीलाशुक मुनि ने सरस्वतीकण्ठाभरण पर पुरुषकार' नाम्नी २० व्याख्या लिखी है। इसका एक हस्तलेख त्रिवेण्डम के हस्तलेख संग्रह में है। देखो-सूचीपत्र भाग ६, ग्रन्थाङ्क ३५ । पं० कृष्णमाचार्य ने भी अपने 'हिस्ट्री आफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर' ग्रन्थ में इसका उल्लेख किया है । इस टीका में ग्रन्थकार ने पाणिनीय जाम्बवती काव्य के अनेक श्लोक उद्धृत किये हैं।' २५ कृष्ण लीलाशुक वैष्णव सम्प्रदाय का प्रसिद्ध प्राचार्य है। इसका बनाया हुअा कृष्णकर्णामृत वा कृष्णलीलामृत नाम का स्तोत्र वैष्णवों में अत्यन्त प्रसिद्ध है। इसने धातुपाठविषयक 'दैवम्' ग्रन्थ पर 'पुरुष कार' नाम्नी व्याख्या लिखी है। इससे ग्रन्थकार का व्याकरणविषयक प्रौढ़ पाण्डित्य स्पष्ट विदित होता है । ३० १. वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग १, खण्ड २, पृष्ठ २११ । २. द्र० - भाग १, भूमिका पृष्ठ २, ३। ३. द्र० - पृष्ठ ३३६ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770