Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 733
________________ ६९६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ___ जन्म-नाम-हेमचन्द्र का जन्म-नाम 'चांगदेव' (पाठा० 'चंगदेव') था। ___ जन्म-स्थान-ऐतिहासिक विद्वानों के मतानुसार हेमचन्द्र का जन्म 'धुन्धुक' ('धुन्धुका') जिला अहमदाबाद में हुआ था। गरु-हेमचन्द्र के गुरु का नाम 'चन्द्रदेव सरि' था। इन्हें देवचन्द्र सूरि भी कहते थे । ये श्वेताम्बर सम्प्रदायान्तर्गत वज्रशाखा के आचार्य थे। दीक्षा -एक बार माता के साथ जैन मन्दिर जाते हुए चांगदेव (हेमचन्द्र) की चन्द्रदेव सूरि से भेंट हुई। चन्द्रदेव ने चांगदेव को १० विलक्षण प्रतिभाशाली होनहार बालक जानकर शिष्य बनाने के लिये उन्हें उनकी माता से मांग लिया । माता ने भी अपने पुत्र को श्रद्धा पूर्वक चन्द्रदेव मुनि को समर्पित कर दिया। इस समय चांगदेव के पिता परदेश गये हुए थे। साधु होने पर चांगदेव का नाम सोमचन्द्र रखा गया । प्रभावक-चरितकार के मतानुसार वि० सं० ११५० १५ माघसुदी १४ शनिवार के ब्राह्ममूहर्त में पांच वर्ष की वय में पार्श्व नाथ चैत्य में भागवती प्रव्रज्या दी गई।' मेरुतुगसूरि के मतानुसार वि० सं० ११५४ माघसुदी ४ शनिवार को ह वर्ष की आयु में प्रव्रज्या दी गई।' सं० ११६२ में मारवाड़ प्रदेशान्तर्गत 'नागौर' नगर में १७ वर्ष की वय में इन्हें सूरि पद मिला, और इनका नाम हेमचन्द्र हुा । .२० कई विद्वान् सूरि पद की प्राप्ति सं० ११६६ वैशाखसुदी ३ (अक्षय तृतीया), मध्याह्न समय २१ वर्ष की वय में मानते हैं।' पाण्डित्य-हेमचन्द्र जैन मत के श्वेताम्बर सम्प्रदाय का एक प्रामाणिक प्राचार्य है । इसे जैन ग्रन्थों में 'कलिकालसर्वज्ञ' कहा है। जैन लेखकों में हेमचन्द्र का स्थान सर्वप्रधान है । इसने व्याकरण, २५ न्याय, छन्द, काव्य और धर्म आदि प्रायः समस्त विषयों पर ग्रन्थ रचना की है । इसके अनेक ग्रन्थ इस समय अप्राप्य हैं। ___ सहायक-गुजरात के महाराज सिद्धराज और कुमारपाल प्राचार्य हेमचन्द्र के महान भक्त थे। उनके साहाय्य से हेमचन्द्र ने अनेक ग्रन्थों की रचना की, और जैन मत का प्रचार किया। १.श्री जैन सत्यप्रकाश' वर्ष ७, दीपोत्सवी अंक (१९४१)पृष्ठ ६३ टि० २ [१] । २. वही, पृष्ठ ६३, टि० २ [२] । ३. वही, पृष्ठ ६३, ६४ । ३

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