Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 725
________________ ६८८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास सरस्वतीकण्ठाभरण का आधार 'सरस्वतीकण्ठाभरण' का मुख्य आधार पाणिनीय और चान्द्रव्याकरण हैं। सूत्ररचना और प्रकरणविच्छेद आदि में ग्रन्थकार ने पाणिनीय अष्टाध्यायी की अपेक्षा चान्द्रव्याकरण का आश्रय अधिक लिया है। यह इन तीनों ग्रन्थों की पारस्परिक तुलना से स्पष्ट है। पाणिनीय शब्दानुशासन के अध्ययन करनेवालों को चान्द्रव्याकरण और सरस्वतीकण्ठाभरण का तुलनात्मक अध्ययन अवश्य करना चाहिये। . सरस्वतीकण्ठाभरण के व्याख्याता १० . १-भोजराज __भोजराज ने स्वयं अपने शब्दानुशासन की व्याख्या लिखी थी। इस में निम्न प्रमाण हैं- . १. गणरत्नमहोदधिकार वर्षमान लिखता है 'भोजस्तु सुखादयो दश क्यविधौ निरूपिता इत्युक्तवान्' ।' १५ वर्धमान के इस उद्धरण से स्पष्ट है कि भोजराज ने स्वयं अपने ग्रन्थ की वृत्ति लिखी थी। वर्धमान ने यह उद्धरण जातिकालसुखादिभ्यश्च सूत्र की वृत्ति से लिया है । २. क्षीरस्वामी अमरकोष १।२।२४ की टीका में लिखता है'इल्वलास्तारकाः । इल्वलोऽसुर इति उणादौ श्रीभोजदेवो व्याकरोत्' । क्षीरस्वामी ने यह उद्धरण सरस्वतीकण्ठाभरणान्तर्गत 'तुल्वलेल्वलपल्वलादयः3 उणादिसूत्र की वृत्ति से लिया है। यद्यपि यह पाठ दण्डनाथ की वृत्ति में भी उपलब्ध होता है । तथापि क्षीरस्वामी ने यह पाठ भोज के ग्रन्थ से ही लिया है, यह उसके 'श्रीभोजदेवो व्याकरोत्' पदों से स्पष्ट है। . ... वर्धमान और क्षीरस्वामी ने भोज के नाम से अनेक ऐसे उद्धरण दिये हैं, जो सरस्वतीकण्ठाभरण की व्याख्या से ही उद्धृत किये जा सकते हैं । अतः प्रतीत होता है कि भोजराज ने स्वयं अपने शब्दानुशासन पर कोई वृत्ति लिखी थी। १. गणरत्नमहोदधि पृष्ठ ७ । २. सरस्वतीकण्ठाभरण ३ । ३ । १०१ ॥ ० ३. सरस्वतीकण्ठाभरण २।३ । १२२ ॥

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