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संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास
और श्रद्धेय मुनि जिनविजयजी ने अनेकानेक प्रमाणों से हरिभद्र सूरि का समय वि० सं० ७५७ - ८२७ तक सिद्ध किया है । अतः आचार्य मल्लवादी विक्रम की आठवीं शताब्दी के पहले के विद्वान् हैं, यह निश्चय है । "
हमारे विचार में हरिभद्रसूरि वि० सं० ७५७ से प्राचीन है ।"
४. राजशेखर सूरि कृत प्रबन्धकोश के अनुसार मल्लवादी वलभी के राजा शीलादित्य का समकालिक हैं । प्रबन्धकोश में लिखा हैमल्लवादी ने बौद्धों से शास्त्रार्थ करके उन्हें वहां से निकाल दिया था । वि० सं० ३७५ में म्लेच्छों के आक्रमण से वलभी का नाश हुआ १० था, और उसी में शीलादित्य की मृत्यु थी । " पट्टावलीसमुच्चय के अनुसार वीरनिर्वाण ८४५ वर्ष बीतने पर वलभीभंग हुआ । कई विद्वानों के मतानुसार बीर संवत् का आरम्भ विक्रम ४७० वर्ष पूर्व हुआ था । तदनुसार भी वलभीभंग का काल वि० सं० ३७५ स्थिर होता है । " प्रबन्धकोश के सम्पादक श्री जिनविजयजी 'विक्रमादित्य१५ भूपालात् पञ्चषत्रिकवत्सरे' का अर्थ ५७३ किया है, यह 'प्रजानां वामतो गतिः' नियमानुसार ठीक नहीं है।
१. प्र० सं० पृष्ठ १६४, द्वि० सं० पृष्ठ १६९ ।
ऐसी जैन
१६५ ) यही
२०
२. हरिभद्रसूरि का वि० सं० ५८५ में स्वर्गवास हुआ था, संप्रदाय में श्रुतिपरम्परा है (जैन साहित्य नो सं० इतिहास पृष्ठ काल ठीक है । हरिभद्रसूरि को सं० ७५७-६२७ तक मानने मुख्य श्राधार इत्सिंग के वचनानुसार भर्तृहरि और धर्मपाल को वि० सं० ७०० के आसपास मानना है । इन्सिंग का भर्तृहरि विषयक लेख भ्रान्तियुक्त है, यह हम पूर्व (पृष्ठ ३८७ - ४०१ तक) लिख चुके हैं ।
में
हमारा विचार है पाश्चात्य विद्वानों द्वारा निर्धारित चीनी यात्रियों की तिथियां भी युक्त नहीं है। उन पर पुनः विचार होना चाहिए ।
२५
३. पृष्ठ २१-२२ । विक्रमादित्य भूपालात् पञ्चापत्रिक ( ३७५ ) वत्सरे जातोऽयं वलभीभङ्गो ज्ञानिनः प्रथमं ययुः । ४. अत्रान्तरे श्री वीरात् पञ्चचत्वारिंशदधिकाष्टशत ८४५ वर्षातिक्रमे वलभीभंग: । पृष्ठ ५० ।
३०
५. पट्टावली समुच्चय में लिखा है- " श्रीवीरात् ५५० वर्ष ३८ शुन्यो वंशः " । पृष्ठ १६८ । तदनुसार वि० सं० हुआ। हमें पट्टावली का यह लेख अशुद्ध प्रतीत होता है
।
विक्रमवंशः, तदनु
२९५ में वलभीभंग
६. पृष्ठ १०९ ।