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संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास
३ - अप्पय्य दीक्षित के भ्रातुष्पौत्र नीलकण्ठ के उल्लेख से विदित होता है कि अप्पस्य दीक्षित ने व्यङ्कटदेशिकं के यादवाभ्युदय की टीका बेल्लूर के राजा चिन्नतिम्म नायक की प्रेरणा से लिखी थी । चिन्नतिम्म नायक का राज्यकाल विक्रम सं० १५६६ - १६०७ पर्यन्त है ।
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४ - अप्पय्य दीक्षित के भ्रातुष्पीत्र नीलकण्ठ दीक्षित ने 'नीलकण्ठ चम्पू' की रचना कलि सं० ४७३८ अर्थात् वि० सं० १६६४ में की थी ।'
५ - प्रात्मकूर ( कर्मूल - श्रन्ध्र) निवासी हमारे मित्र श्री पं० पद्मनाभ राव जी ने १०-११-१९६३ के पत्र में लिखा है
"अप्पय्य दीक्षित ने श्री विजयेन्द्र तीर्थ और ताताचार्य के साथ तज्जाव्वरु नायक शेवप्प नायक की सभा को अलङ्कृत किया था । शेवप्प नायक ने सं० १६३७ ( = सन् १५८०) में श्री विजयेन्द्र तीर्थं को ग्रामदान किया था । मैसूर पुरातत्व विभाग के १९१७ के संग्रह (रिपोर्ट) में निम्न श्लोक उद्धृत हैं ।
ताग्य इव स्पष्टं विजयोन्द्रयतीश्वरः । ताताचार्यो वैष्णवाग्रयः सर्वशास्त्रविशारदः ॥ शैवाद्वैकसाम्राज्यः श्रीमान् श्रप्पयदीक्षितः । तत्सभायां मर्त स्वं स्थापयन्तस्थितास्त्रयः |
इससे स्पष्ट है कि प्रत्पर्य दीक्षित का काल वि० सं० १५७५० २० १६५० के मध्य है ।
६ - ' हिन्दुत्व' के लेखक रामदास गौड़ ने लिखा है कि अप्पय्य दीक्षित तिरुमल्लई (सं० १६२४ १६३१ ) ; चिन्नतिम्म (सं० १६३१ - १६४२); और वेङ्कट या पति (१६४२ - १ ) इन तीनों के सभापण्डित थे । अप्पय्य दीक्षित ने विभिन्न ग्रन्थों में इन राजाओं की २५ नाम मिर्देश किया है। उनका जैन्म से० १६०८ में हुआ था, और
मृत्यु ७२ वर्ष की आयु में स० १६८० में हुई थी ।
१. प्रष्टात्रिंशदुपस्कृत- सप्तशताधिक चतुरसह सेषु (४७३५) ग्रथितः किल नीलकण्ठ विजयोऽयम् ॥ २. हिन्दुत्व, पृष्ठ ६२७ । ३. हिन्दुत्व, पृष्ठे ६२६ ॥
कलिवर्षेषु गतेषु